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________________ श्री कल्पसू 119011 漫漫賞獎 獎賞 छाया -नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा रात्रौ वा विकाले वा अध्वगमनाय एतुम् ॥ सू० १३ ॥ टीका- 'नो कप्पड़' इत्यादि - व्याख्या स्पष्टा । नवरं - विकाले संध्याकाले सूर्योदयात्पूर्व च, अध्वगमनाय एतुम् = विहारं कर्त्तुमिति ॥ सू० १३ ॥ अनन्तरमुत्रे रात्रौ विकाले चाध्वगमननिषेधमुक्त्वा सम्प्रति तत्रैव यद् यद् वस्तु साधुभिश्च साध्वीभिश्व न ग्राह्यं तत्सापवादमाह - मूलम् - नो कप्पड़ निग्गंथाणं वा निग्गंधीणं वा राओ वा वियाले वा वत्थं वा पतंवा कंबलं वा पायपुंछणं वा रयहरणं वा गोच्छगं वा पडिगाहित्तए । नन्नत्थ चोरचोरिएणं ॥ सू० १४ ॥ मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को रात्रि में अथवा विकाल में अर्थात् संध्यासमय में तथा सूर्योदय के पहले विहार करना नहीं कल्पता ॥ सू० १३|| टीका का अर्थ - - व्याख्या स्पष्ट है । केवल - विकाल का अर्थ संध्याकाल तथा सूर्योदय के पहले का समय है । अध्वगमन का अर्थ विहार करना है | | ०१३ || पिछले सूत्र में रात्रि और संध्या के समय तथा सूर्योदय के पूर्व विहार करने का निषेध वतला कर, उस समय में साधु-साध्वी को जो जो वस्तु नहीं लेनी चाहिए, वह अपवाद के सथ बतलाते हैं - 'नो कप्पड़' इत्यादि । મૂલ અને ટીકાના અથ”—સાધુ-સાધ્વીઓએ રાત્રિના સમયમાં, સધ્યા સમયે અગર સૂર્યાંય પહેલાં વિહાર કરવા નહિ. ઉપરના સમયેા ‘વિકાલ' કહેવાય છે. અધ્વગમનના અવિહાર કરવુ' એવું થાય છે (સ્૦૧૩) પાછળ કહેલા સમયમાં એટલે રાત્રિ, સધ્યા સમયે અને સૂર્યોદયની પહેલાં વિહાર કરવાના નિષેધ કરીને डुवे ते सभयभां साधु-साध्वीमो ने ने वस्तु नहि देवी हो, ते अपवाहनी साथै मतावे छे- 'नो कप्पइ ' छत्याहि. શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्प मञ्जरी टीका 119011
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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