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श्रीकल्पसूत्रे ७१।।
छाया-नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां वा रात्रौ वा विकाले वा वस्त्रे वा पात्रं वा कम्बल वा पादपोउछन वा रजोहरणं वा गोच्छकं वा प्रतिग्रहीतुम्। नान्यत्र चोरचोरितात् ॥ मू० १४ ॥
टीका-'नो कप्पा' इत्यादि । वस्त्रपात्रादिकं प्रतीतं, तत् निग्रन्थानां निग्रन्थीनां वा रात्रौ विकाले वा प्रतिग्रहीतुम् आदातुं नो कल्पते । यदि तु वस्त्रपात्रादिकं चोरचोरितं भवेत् , स चोरो रात्रौ विकाले वा समागत्य तद् वस्त्रपात्रादिकं दद्यात्तदा ग्रहीतुं कल्पते एव । अमुमेवार्थ सूचयितुमाह-'नन्नत्थ चोरचोरिएणं' इति ॥ स०१४॥
अशनादिकमपि तेषां रात्रौ ग्रहीतुं न कल्पते इति दर्शयितुमाह
कल्पमञ्जरो टीका
मूल का अर्थ- साधुओं को और साध्वियों को रात्रि में या संध्यासमय तथा सूर्योदय के पहले वस्त्र, पात्र, कंबल, पादपोंछन, रजोहरण या पूंजगी ग्रहण करना नहीं कल्पता, सिवाय चोर के चुराये हुए के ।।सू०१४॥
टीका का अर्थ-वस्त्र पात्र आदि प्रसिद्ध ही हैं । उन्हें रात्रि में या विकाल में -संध्याकालमें तथा सूर्योदय के पहले साधुओं और साध्वियों को लेना नहीं कल्पता । हाँ, वस्त्र पात्र आदि चोरने चुरा लिए हो और वह चोर रात्रि या विकाल के समय लाकर देवे तो ले लेना कल्पता है। इसी आशय को सूचित करने के लिए कहा है-" नन्नत्य चोरचोरिएणं" इति ॥सू०१४॥
अशन आदि भी रात्रि में लेना उन्हें नहीं कल्पता, यह दिखाने के लिए कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि ।
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भूत अनेटाना मथ-साधु-साध्वीमाये शत्र, सध्या समये तथा सूर्योदय पक्ष, स, पात्र, आभा. પાદDાંછન તથા રજોહરણ અથવા પૂજણી (ગે છે ) ગ્રહણ કરવા નહિ, પણ કદાચ એ વસ્તુઓ ચોરાઈ ગયેલ हाय तो ते श छ. मे पात सूत्र४२ ४ छ-'नन्नत्थ चोरचोरिपण' ति (२०१४)
मशन माहि पण रात्रेवुन ४ ते मतावामां आवे छे-'नो कप्पइ 'न्याहि.
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧