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श्री कल्पसूत्र ॥६८॥
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ग्रामrat maareraधको वास उक्तः । तत्र निर्ग्रन्थीनां मासद्वयावधिवासो बोध्यः । तथा सपरिक्षेपे सबाह्ये ग्रामादौ निर्ग्रन्थानां मासद्वयावधिवासः प्रोक्तः । तत्र निर्ग्रन्थीनां मासचतुष्टयावधिवासो बोध्य इति ॥ ०११॥ साधु-साध्वीनामेकग्रामादौ निवासविषये निषेधसूत्रमाह
मूलम् - नो कम्पe निम्गंथाणं वा निम्गंधीणं वा गामंसि वा जाव रायहागिसि वा एगदुबारा एगनिक्खमणपवेसाए एगयओ वसित्तए ||०१२||
छाया -नो कल्पते निग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा ग्रामे वा यावद् राजधान्यां वा एकमाकारायाम् एकद्वारायाम् एकनिष्क्रमणप्रवेशायाम् एकतो वस्तुम् ||१२||
एगपागाराए
के लिए कोटवाले और बाहर विना वस्तीवाले ग्राम आदि में एक मास तक रहना कहा गया है, किन्तु साध्वियों के लिए वह अवधि दो मास की है । बाहर वस्तीवाले ग्राम आदि में साधुओं को दो मास तक के निवास की अवधि कही गई थी, जहाँ साध्वियों के लिए चार मास तक के निवास की अवधि कही गई है । । ०९१ ॥
साधु और साध्वियों के एक ग्राम आदि में निवास के विषय में निषेधसूत्र कहते हैं- 'नो कप्पड़
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इत्यादि ।
मूल का अर्थ --साधुओं और साध्वियों को एक कोटवाले, एक ही द्वार वाले, एक ही आने-जाने के मार्गवाले ग्राम में यावत् राजधानी में एक ही समय दोनों को निवास करना नहीं कल्पता ।। ०१२।।
રહેવાનું કહ્યું છે. પરંતુ સાધ્વીઓને માટે તે અવિધ એ માસની કહેવામાં આવી છે. બાહરની વસ્તીવાલા ગામ આદિમાં સાધુઓને માટે બે માસ સુધી નિવાસ કરવાની અવિધ કહેલ છે ત્યાં સાધ્વીઓને માટે ચાર માસ સુધી રહેવાની અવિધ કહેવામાં આવી છે. (સૂ૦૧૧)
वे सूत्र साधु ने साध्वीने
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧
गाममा रहेवानेो निषेध उडे छे. 'नो कप्पड़' त्याहि.
મૂલના અ—એક કિલ્લાવાલા, એક જ દરવાજાવાલા, આવવા જવાના એકજ રસ્તાવાલા ગામ, નગર, પુર, પટ્ટણ, સ’બાહ, સંનિવેશ, દ્રોણુમુખ અને રાજધાની વિગેરેમાં એક જ વખતે સાધુ-સાધ્વીઓને નિવાસ કરવા
यता नथी. (सू०१२)
कल्प
मञ्जरी
टीका
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