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________________ श्रीकल्प एवमादयो ये गुणास्तैः पूर्ण:-पुक्तः, मङ्गलमयत्वात् स्वयं मङ्गलस्वरूपत्वात् सकललोकमङ्गलजनकः-सकला:समस्ता ये लोकास्तेषां यन्मङ्गलम् शुभ-जिनोक्तधर्ममाप्तिरूपं तस्य जनकः-सकललोकानां सद्धर्मोपदेशक इत्यर्थः, अत एव-सकललोकहृदयकमलाधिष्ठितः-सकललोकानां यद् हृदयरूपं कमलं तत्र अधिष्ठितः स्थितःसकलजनानामाराध्य इत्यर्थः, तथा-पञ्चत्रिंशदवाणीगुगप्रतिपूर्णः-संस्कारवचम् १, उदात्तत्वम् २, उपचारोपेतत्वम् ३, गम्भीरध्वनित्वम् ४, अनुनादित्वम् ५, दक्षिणत्वम् ६, उपनीतरागत्वम् ७, महार्थत्वम् ८, अव्या कल्पमञ्जरी टीका ॥४९३॥ पूर्णकलशए स्वमफलम्. सरलता आदि-आदि गुणों से युक्त होगा। वह स्वयं मंगलमय होगा, अतः समस्त जनों के मंगल-जिनकथित धर्म की प्राप्ति रूप शुभ-का जनक होगा, अर्थात् समीचीन धर्म का उपदेशक होगा। समीचीन धर्म का उपदेशक होने के कारण वह सब लोगों के हृदय रूपी कमल में स्थित होगा, अर्थात् सबका आराध्य होगा। वह वाणी के पैंतीस गुणों से परिपूर्ण होगा। वे गुण इस प्रकार हैं (१) संस्कारवत्व-वाणी का संस्कारयुक्त होना-व्याकरणादि की दृष्टि से निर्दोष होना। (२) उदात्तता-स्वर का उदात्त-ऊंचा होना। (३) उपस्वारोपेतत्व-भाषा में ग्रामीणता न होना । (४) गंभीरध्वनित्व-मेघ के शब्द के समान गंभीर ध्वनि होना । (५) अनुनादिता-प्रतिध्वनियुक्त ध्वनि होना। ગુવાળે હશે. તે પોતે મંગળમય હશે, તેથી સઘળા લેકોનું મંગળ-જિન કથિત ધમની પ્રાપ્તિ રૂપ શુભ-કરનાર હશે, એટલે કે સમીચીન ધર્મનો ઉપદેશક થશે. સમીચીન ધર્મને ઉપદેશક હોવાને કારણે તે બધા લોકોના હદયરૂપી કમળમાં થાન પામશે એટલે કે બધાને આરાધ્ધ થશે. તે વાણીના પાંત્રીસ ગુણેથી પરિપૂર્ણ થશે. તે ગુણ આ પ્રમાણે છે (૧) સંસ્કારવન્ડ-વાણી સરકારવાળી હોવી-વ્યાકરણ આદિની દષ્ટિથી નિર્દોષ હેવી. (२) Grual-२१२ -या डा. (3) 6वाशपतप-लषामा गाभाडयाना (४) अलीरनिव-वाशी भेधना सवा पीली हवी. (1) मनुनाहिता-प्रतिनिपाणी सपा . ॥४९३॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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