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________________ श्री कल्पसूत्रे ॥४८६ ॥ 鄭源 ७- सूरस्वप्नफलम् छाया - सुरदर्शनेन असौ लोकालोकप्रकाशको भविकमलविकासको भव्य हृदय - कुहर- चरा - नन्तप्रचण्ड-मार्तण्ड - मण्डल - तरुण - किरणदुर्भेद - चिरन्तना - ऽनादि - गाढ - मिथ्यात्व - तिमिर-प्रणाशको साक्षात् अतिशयतेजःपुञ्ज इव भविष्यति ||मू० ३७ ॥ धर्मगगनाङ्गणे टीका- 'सूरदंसणेणं' इत्यादि । सूरदर्शनेन - सूरः सूर्यः तदर्शनेन असौ लोकालोकप्रकाशकः-लोकः= पश्चास्तिकायात्मकः, तद्भिनोऽलोकः, तयोः प्रकाशकः = प्ररूपकः, भविकमलविकासकः - भविनः = भव्यप्राणिनः ७- सूर्यस्वप्न का फल मूल का अर्थ -- 'सूरदंसणेणं' इत्यादि । सूर्य-दर्शन से वह (१) लोक- अलोक का प्रकाशक, (२) भव्य-जीव रूपी कमलों का विकास करने वाला, (३) भव्यों के हृदयरूपी गुफा में स्थित, अनन्त प्रचण्ड मृयों की तीव्र किरणों से भी न भेदे जा सकने वाले चिरकालीन या अनादिकालीन मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का विनाश करने वाला, (४) धर्मरूपी गगनांगण में प्रत्यक्ष अतिशय तेज के पुंज के समान होगा || सू० ३७|| टीका का अर्थ-- 'सरदंसणेणं' इत्यादि । सूर्य का स्वप्न देखने से वह बालक (१) पंचास्तिकाय रूप लोक का और उससे भिन्न अलोक का प्रकाशक अर्थात् निरूपण करने वाला होगा, (२) वह भव्यप्राणी रूपी कमलों को विक ૭-સૂર્ય સ્વપ્નનું ફળ भूणना अर्थ - "सूरदंसणेण" इत्याहि सूर्य - हर्शनथी ते [१] सोलोनो प्रकाश, [२] लव्य - लबइपी કમળાને વિકાસ કરનાર, [૩] ભાનાં હૃદયરૂપી ગુફામાં રહેલ, અનંત પ્રચંડ સૂના તીવ્ર કિરણા વડે પણ ન ભેદી શકાય એવા ચિરકાલીન અથવા અનાદિકાલીન મિથ્યાત્વરૂપી 'ધકારનો નાશ કરનાર, [૪] ધર્મરૂપી ગંગનાંગણમાં પ્રત્યક્ષ અતિશય તેજના પુજ સમાન થશે. (સૂ૦૩૭) टीडाना अर्थ - झयदंसणेण' इत्याहि सूर्य'नु' स्वप्न हेवाथी ते आज [१] पंचास्तिकाय लोडना भने તેનાથી ભિન્ન અલાકના પ્રકાશક એટલે કે નિરૂપણ કરનાર થશે. [૨] તે ભવ્ય પ્રાણીરૂપી કમળાને વિકસિત કરશે. તથા [૩] શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧ कल्पमञ्जरी टीका सूर्यस्व फलम्. ||४८६||
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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