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________________ श्रीकल्प कल्प सूत्रे ॥४८५॥ 癌嬌屬 मज्जरी टीका टोका-'चंददसणेणं' इत्यादि। चन्द्रदर्शनेन-चन्द्रस्वमदर्शनेन असौ बालो भव्यकुमुदकुलविकाशकःभव्या एव कुमुदानि तेषां कुलं समूहस्तस्य विकासकः-भव्यानन्ददायक इत्यर्थः, जन्मजरामरणादिजनितानन्तसंतापहारकः-जन्मजरामरणादिजनितो योऽनन्तः निरवधिकः सन्तापा-दुःखं तस्य हारका हरणकर्ता, जिनशासनसागरवर्धकः-जिनशासनरूपो यः सागरस्तस्य वर्धकः वृद्धिकर्ता, अनादिमिथ्यात्वतिमिरप्रणाशकः-अनादि= आदिरहितं यद् मिथ्यात्वतिमिर-मिथ्यात्वान्धकारस्तस्य प्रणाशक विनाशकः, त्रिभुवनाहादकः भुवनत्रयानन्दजनकश्च भविष्यतीति ॥ ३६॥ ७-सूरसुमिणफलं मूलम्-सूरदसणेणं अम लोगालोगप्पगासगो भविकमलविगासगो भन्न-हियय-कुहर-चरा-गंत-प्पचंडमत्तंड-मंडल-तरुणकिरण-दुब्भेय-चिरंतणा-ऽणाइ-गाढ-मिच्छत्त-तिमिर-प्पणासगो धम्मगगणंगणे सक्खं अइसयतेजपुंजो विव भविस्सइ ।।सू० ३७॥ चन्द्रस्वाम फलम्. टीका का अर्थ-'चंददसणेणं' इत्यादि । चन्द्र का स्वम देखने के कारण वह बालक (१) भव्यजीवरूपी कुमुदों-चन्द्रविकासी कमलों का विकास करने वाला, अर्थात् भव्य जीवों को आनन्द देने वाला होगा। (२) जन्म, जरा और मरण आदि से होने वाले असीम संताप को अपहरण करने वाला होगा। (३) जिनेन्द्र भगवान् के शासन-रूपी समुद्र की वृद्धि करने वाला होगा। (४) अनादि काल से चले आने वाले मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का विनाशक होगा और (५) तीन लोकों के प्राणियों को आनन्द देने वाला होगा ॥सू०३६॥ ॥४८५॥ सानो अथ-'चददसणेणं' याहि यन्द्रनुजनवायी ४ (१) लव्य१३पी भुहो-यन्द्रविलासी કમળાને વિકાસ કરનાર એટલે કે ભવ્યને આનંદ દેનાર થશે. (૨) જન્મ, જરા, અને મરણ આદિથી પેદા થતા અપાર સંતાપનું અપહરણ કરનાર થશે. (૩) જિનેન્દ્ર ભગવાનના શાસનરૂપી સાગરની વૃદ્ધિ કરનારો થશે. (૪) અનાદિ કાળથી ચાલ્યા આવતા મિથ્યાત્વરૂપી અંધકારને નાશ કરનાર થશે, અને (૫) ત્રણે લોકના પ્રાણીઓને આનન્દ દેનાર થશે સૂ૦ ૩૬) શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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