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पश्चवर्ण-रत्न-मुक्ताहार-तोरण-विभूषित-चतुरिम् अष्टोत्तरसहस्र-मणिस्तम्भ-प्रभा-विडम्बित-सहस्रकरं विविधशोभाधरं विमल-शङ्कतल-दधिधन-गोक्षीरफेन-रजतनिकर-निर्मल-प्रकाश, जाज्वल्यमान-दिव्य-तेजः-पुञ्जसंकाशं मृग-महिष-वराह-च्छगल-दर्दुर-हय-गज-गवय-भुजग-खड्ग-वृषभ-नर-मकरादि-जलचर-किन्नर-सुरचमर-सिंह-शार्दूला-ष्टापद-वनलता-कमललतादि-विचित्र-चित्र-संजात-दर्शक-जन-मन-स्तोषं सरस-ताललयाखर्व-गर्व-गन्धर्व-सङ्गीत-स्फीत-श्रुति-मोद-पोष-घोषं वनधन-घन-घनाघनो-जित-गर्जित-विडम्बिना वृन्दारक
श्रीकल्प
सूत्रे ॥४५२॥
कल्प
मञ्जरी
टीका
चारों द्वार पाँच वर्गों के रत्नों एवं मोतियों के हारों के तोरणों से विभूषित थे। वह एक हजार आठ मणिमय स्तंभों की प्रभासे सूर्य को तिरस्कृत करता था। भाति-भांति की शोभा को धारण करता था। निर्मल शंख, दही, गाय के दूध के फेन तथा चांदी के समूह के समान शुभ्र प्रकाश वाला था। जाज्वल्यमान स्वर्गीय तेजोराशि के सदृश था। मृग, महिष सूअर, बकरा, मेंढक, घोड़ा, हाथी, रोझ, सर्प, गेंडा, बैल, नर तथा मगर आदि जलचरों के, और किन्नर, सुर, चमर, सिंह, बाघ, अष्टापद, वनलता, कमललता आदि के विचित्र-विचित्र चित्रों से देखने वालों के मन में सन्तोष उत्पन्न करने वाला था। उसमें सरस ताल तथा लय के तीव्र गर्व वाले गन्धर्वो के गान का मधुर एवं कानों के आनन्द को पुष्ट करने वाला घोष हो रहा था। पानी ही जिनकी पूंजी है ऐसे सघन मेघों की गंभीर गर्जना की विडम्बना
देवविमान
स्वम
वर्णनम्.
રહ્યાં હતાં. એક હજાર આઠ મણિમય થાંભલાની પ્રભા આગળ સૂર્યનું તેજ ઝાંખું પડતું. વિવિધ પ્રકારની શોભા માલૂમ પડતી હતી.
નિર્મલ શંખ, દહી, ગાયના દૂધનું ફીણ અને ચાંદીના પાટલા સમાન આ વિમાન ઉજજવળ હતું. સર્વ પ્રકારના તેજને સમૂહ ત્યાં રેડવામાં આવ્યો હતો.
मा विमानमा २६, भडिप, सु१२, १४, हे, घोडा, हाथी, शश, सपा, में, मेनर, तथा मगर आ६ सयरे, भने नरो, सुर, यम२, सि., वाय, मष्टापा, पनसता. भसता, विगेरेना चित्र-विचित्र चित्री આલેખવામાં આવ્યાં હતાં, આ ચિત્ર મનને ગમે તેવા અને પ્રમોદકર હતાં.
આ વિમાનમાં, ગંધર્વોના ગાન અને કિન્નરેના નાચ થઈ રહ્યાં હતાં. મેઘના સમૂહને પણ ગર્જનામાં હરાવી દે તેવી વનિ છૂટતી હતી. આ વિમાનમાં, સર્વોત્કૃષ્ટ મઘમઘાયમાન ધૂપથી સુગંધ ફેલાઈ રહી હતી.
॥४५२।।
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧