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श्रीकल्पसूत्रे ॥४४१॥
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१०- पउमसरोवरसुमिणे
मूलम् - तत्र पुण सा हीण - पीण - पाढीण - मग्गुर-साल-सगुल- राजीव- रोहियाइ - मीण- मगर -गाहसुसुमार-कम- पभिइ - जलयर - नियर - परिपीयमाण- पाणीयं तरलतर-तरंग-तरंगियं कल्हार - हल्लग- कुवलय-इंदीवर- केरव - पुंडरीय - कोगणय-परम- सुसमा - मुसमियं अरुणा-रुण-किरण- फुरण - उन्निद्द - कमल- किंजक - निस्संदमाण - मुरहितम- पराग-राग-संजाय - ईसिपीय-रत्ततोयं पराग-परिपाण-मत्त - मुइय - मंजु - गुंजंत- अंतोभमत-मिलिंद - बिंद- पिहीयमाण-नलिणं विहरत- विविह- सउणि-गणं कमलिणी-दल- विलसंत- अंबुबिंदु-कथंबग - जणियमोत्तिय - तारया - विभमं रयणायरसमं सरोयपुंजाहिरामं सयल-सोहा - मुह-समत्रिय - कलहंस - राजहंस - बालहंसचकवाग - चक- सरस-सारसा - खव्व-गव्वा - हिट्ठिय - विहंगम - जुयल - संसेविय - जल-लोलं अणेगविह- देव-देवीजुयल - कीडण - उच्छलंत - कल्लोलं पेच्छय-जण-हियय - मग - नयणा-णंद-करं सयप्पहा - पराभूय - सगल - सरोवरं वरं पउमसरोवरं पास ||म्० २४ ॥
१०- पद्मसरोवरस्वमः
छाया - ततः पुनः सा हीन - पीन पाठीन - मद्गुर - शाल - शकुल - राजीव- रोहितादिमीन-मकर - ग्राहशिशुमार- कमठ - प्रभृति - जलचर - निकर - परिपीयमान- पानीयं तरलतर- तरङ्ग-तरङ्गितं कहार - हल्लक- कुवलयेकरनेवाला था । ऐसे रत्नजटित रजतकलश अर्थात् रत्नों से जडे हुए चांदी के कलश को देखा ॥मू० २३॥ १० - पद्मसरोवर का स्वप्न
मूल का अर्थ- 'तओ पुण सा हीणपीण०' इत्यादि । तत्पश्चात् त्रिशला देवी ने दशवें स्वप्न में श्रेष्ठ पद्म-सरोवर को देखा । वह कैसा था ? सो कहते हैं— हीन (दुबले) और पोन ( तगडे) पाठीन, मद्गुर, शाल, शकुल, राजीव, रोहित आदि मत्स्य तथा मगर, ग्राह, शिशुमार, कमठ - कछुए आदि जलचर जीवों का અધકારના નાશ કરનારા હતા. એવા રત્નજડિત રજતકળશને એટલે કે રત્નાથી જડેલા ચાંદીના કળશને જોયા. (સૂ૦૨૩) १०- हम सरोवरनु स्वप्न.
भूलना अर्थ - 'तओ पुण सा हीणपीण०' धत्याहि ते स्वप्नना अनुलव माह, हशमा स्वप्ने तेम श्रेष्ठપદ્મસરાવર જોયુ. मासरोवरमा पातला लां, इसा, लारे, शाल, राहुल, शव, अथवा विगेरे भयर वा तेनुं पाणी भी रह्या हता.
શ્રી કલ્પ સૂત્ર ઃ ૦૧
BY JE OF Unr on J
कल्प
मञ्जरी टीका
पद्मसरोवरवर्णनम्.
स्वन
॥४४१ ॥