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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥४१॥ HTRA कल्पमञ्जरी टीका मूषा-लसदा-वर्तमाना-मल-कनक-शकल-वर्तुल-विमल-चपला-विडम्बिनयनं कृश-कटि-तटं विशाल-स्थूल-सुन्दरो-हं मांसल-विशाल-बन्धुर-स्कन्धं मृदुलतम-सुलक्षण-मसूण-जटिल-केसर-निकर-करम्बित-ग्रीवं कुण्डलितो-दश्चिताऽकिश्चिदा-स्फालित-विलोल-लाङ्गल-मण्डलं खरतर-नखर-शिखरं सौम्यं सौम्याऽऽकारं लीला-ललाम-स्फालमम्बरतलादुच्छलन्तं निज-मुख-कुहरमभिपतन्तं सिंहं पश्यति ॥मू० १७॥ टीका-'तओ पुण सा' इत्यादि । ततः वृषभस्वमदर्शनानन्तरं पुनः तृतीयस्वप्ने सा-त्रिशला सिंह पश्यतीति सम्बन्धः, कीदृशं सिंहमित्याह-सलिल-बिन्दु-कुन्दे-न्दु-तुषार-गोक्षीर-हार-दकरजः-पाण्डुरतरंः उसके नेत्र धधकती हुई आगमें रक्खे हुए मूषा (सोने को गलाने का मिट्टी का पात्र) में सुशोभित होनेवाले तथा गोलाकार घूमनेवाले निर्मल स्वर्ण खण्ड के समान गोल और दमकती हुई दामिनी अर्थात् चमकती हुई बिजली को भी तिरस्कृत करनेवाले थे। उसकी कमर पतली थी। जंघाएँ विशाल, स्थूल और सुन्दर थीं । स्कंध (कंधा) मांसल, विशाल और सुन्दर था । उसको गर्दन, अत्यन्त नरम, मुहावने चिकने और लम्बे केसरों से युक्त थी। उसकी पूंछ गोलाकार, ऊँची उठाई हुई, लम्बी और चपल थी। नाखनों की नोक खूब तीखी थी। वह सौम्य तथा सौम्य आकार वाला था। उसकी उछाल में कलामय लालित्य था। ऐसे सिंह को आकाशतल से उछलते हुए और अपने मुखरूपी गुफामें प्रवेश करते हुए देखा ॥०१७॥ टीका का अर्थ-'तो पुण सा' इत्यादि। वृषभ का स्वम देखने के पश्चात् त्रिशला देवी ने तीसरे स्वम में सिंह देखा। वह सिंह कैसा था, सो बतलाते है वह सिंह, जल के बिन्दु, कुन्द के फूल ધધકતી કડી સમાન હતાં, તથા ગેળ અને ચમકદાર હતાં. તે સિંહ પાતળી કમરવાળે હતું. તેની જાંઘ વિશાળ, સ્થૂલ અને ઘટાદાર હતી. ખાંધ માંસથી ભરપૂર હતી. ગરદન અત્યંત નરમ, શહામણી અને ચમકદાર કેશ-વાળેથી યુકત હતી. તેનું પૂછડુ ગળાકાર, છેડા પર દટ્ટાવાળું, અને હલન-ચલનવાળું હતું. નખ ઘણા તીક્ષણ અને લલાશથી ભરેલાં હતાં. તે જ્યારે કૂદતે ત્યારે, લાલિત્ય અને કલામય લાગતે. આકાશમાંથી કૂદતાં ઉપરોકત ગુણોવાળે સિંહને, પિતાના મોઢામાં પ્રવેશ કરતે, ત્રિશલારાણીએ नेयो. (२०१७) टान -'तओ पुण सात्याहि वृषानुनयां पछी निमावीत्री भासिनेय.ali वातातेभताछ:- त नामिन्दुम्मा, हनी , यन्द्रमा, डिभ, गायनाइध, भातामानाबा, तथा सूक्ष्म सिंहस्वानवर्णनम् . ॥४१०॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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