________________
श्रीकल्प
सूत्रे
||४०९ ॥
運行
VARNAT
ललिय- लोहिय- दसण-वसणं जवाकुसुम - पलासा-लत्तग-रत्तकमल-दल- मिदुल- ललंत - लंब-लालिय- लोल-रसणं धगधगिति - जलता - गलां - तराल - मूसा - लसंत- आवत्तायता-मल-कणग-सगल-वत्तुल- विमल-चवला- विडंबि-नयणं किसकडि-तडं विसाल - धूल- मुंदरो-रुं मंसल -विसाल-बंधुर खंधं मिउलतम सुलक्खण-मसिण जडिल - केसर - निगर- करंfar - गीवं कुंडलियो दंचिय-अकिंचि-अप्फालिय-विलोल- लंगूल- मंडलं खरयर - नहर - सिहरं सोम्मं सोम्मागारं लीलाललाम-प्फाल अंबरतलाओ उच्छलंतं निय-मुह-कुहरमभिपडतं सीहं पासइ ॥ ० १७॥
३- सिंहस्वनः
छाया - ततः पुनः सा सलिल-बिन्दु-कुन्देन्दु-तुषार-गोक्षीर-हार-द करजः पाण्डुरतरं रमणीय- स्थिर-मटणतर करतलं परिपुष्ट- सुश्लिष्ट - विशिष्ट - कुटिल तीक्ष्णदंष्ट्रा विडम्बित मुखं विमल-कमल-कोमल-ललित-लोहित-दशनवसनं जपाकुसुम - पलाशा लक्तक- रक्तकमलदल - मृदुल- लल-लम्ब- लालित-लोल - रसनं धगधगिति ज्वलद-नलान्तराल३ - सिंह का स्वप्न
मूल का अर्थ- 'तओ पुण सा' इत्यादि । तत्पश्चात् त्रिशला देवीने तीसरे स्वप्न में सिंह को देखा। वह कैसा था ? सो उसका वर्णन करते हैं—वह सिंह - जल की बूंद, कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिम (बर्फ), गाय के दूध, हार और पानी के छोटे बिन्दु से भी अधिक सफेद था । उसकी हथेलियाँ (पंजे) सुन्दर, दर्शनीय, स्थिर और खूब चीकनी थीं। उसका मुख बड़ी-बड़ी, आपस में मिली हुई, उत्तम, टेढ़ी और तीखी दाढों से युक्त था। उसके होठ विमल कमल के समान कोमल, कमate एवं लाल रंग के थे। उसकी जीभ जपाकुसुम के समान, पलाश के पुष्प के समान तथा महावर (अलता) के समान लाल, कमल के पत्र की तरह कोमल, लपलपाती हुई, लम्बी, लारदार और चंचल थी।
૩-સિહ સ્વપ્ન
भूजना अर्थ - 'तओ पुण सा' इत्याहि त्यारमा त्रिशला देवी, स्वप्नमां सिंहने लेयो. ते वाहतो ? તે કહે છે કે, જળબિન્દુસમાન, કુન્દના ફૂલ જેવા અને ચન્દ્રમા, હિમ, ગાયના દૂધ સમાન ઉજળા હતા.
तेना पंन्न सुंदर, दर्शनीय, स्थिर, भने भूम 'सास' वाणां हृतां तेनु भो, उत्तम हाढी, बडणा भने દાઢાથી યુક્ત હતું. તેના હોઠ કમળસમાન કામળ, અને લાલ રંગના હતાં. તેની જીભ કેશુડાના ફૂલ જેવી લાલપલાશષ્પ સમાન ચળકાટવાળી, લપલપતી લાંબી, અને તીણી હતી. તેના નેત્રો, સાનીની સેનુ ગાળવાની
ยม
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧
कल्प
मञ्जरी
टीका
सिंहस्वमवर्णनम्.
॥४०९॥