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________________ श्रीकल्प कल्प सूत्रे ॥२८९॥ मञ्जरी टीका we पश्चनमस्कारो जगजीवजीवनसारः सर्वपापविनाशनकारः सर्वमङ्गलागारमस्ति । अद्यमभृति अहं सर्व सावधयोगं यावजीवं मनोवाकायैर्युत्सृजामि, यावज्जीवं चतुर्विधाहार व्युत्सृजामि, अन्तिमोच्छ्वाससमये शरीरमपि व्युत्सृजामि २१ ।। सू०३३॥ टीका-'अह य अंते' इत्यादि । व्याख्या सुगमा। नवरम्-अन्ते अन्तसमये। नितान्तशान्तस्वान्तःक्षान्त्यादिगुणसेवनेन नितान्तम् अतिशय शान्त-सुस्थिरं स्वान्त-चेतो यस्य स तथा अत्यन्तसुस्थिरचित्त इत्यर्थः । तथा-कालविनयाधष्टप्रकारे-कालविनयादयोऽष्टौ प्रकाराः भेदा यस्य स तथा तस्मिंस्तथोक्ते-काल-विनय-बहुमानोपधानानिह्नवव्यञ्जनार्थतदुभयरूपे, तत्र-काल:-यो यस्याङ्गमविष्टादेः श्रुतस्य काल उक्तः तस्य तस्मिन्नेव यह पूर्वोक्त पंचनमस्कार जगत के समस्त जीवों के लिये जीवन का सार है, समस्त पापों को नष्ट करनेवाला है, और सकल मंगलों में यह प्रथम मंगल है। (२४) आज से मैं सब प्रकार के सावद्य-योग को, जीवन भरके लिए, मन वचन काय से पुनः त्यागता हूँ, साथ ही चार प्रकार के आहार का परिहार करता हूँ और अन्तिम श्वासोच्छ्वास के समय शरीर का भी परित्याग करता हूँ |मू०३३।। टीका का अर्थ-इन्द्रियों का दमन करनेवाले, क्षमा आदि गुणों का सेवन करने से अतिशय शान्त चित्तवाले नन्दमुनिने अन्त समय में इस प्रकार की आराधना की (१) कालविनय आदि आठ प्रकार के ज्ञानाचार में जो अतिचार लगे हो उनकी मैं मन वचन काय से निन्दा करता हूँ। महावीरस्य नन्दनामकः पश्चविंशतितमो होम भवः। આ પાચ નમસ્કાર જીવના જીવનને સાર છે, સમસ્ત પાપના સમૂહને કાટવાવાળો છે, સકલ મંગલમાં श्रेष्ठभ' . (२४) माथी साना साध (पारी) योगन। न त भन-पयन-याथी त्याग ४३ छु: तनी સાથે ચાર પ્રકારના આહારને પણ છોડું છું. અંતિમ શ્વાસોશ્વાસ સુધી આ શરીરને પણ પરિત્યાગ કરૂં છું. (સૂ૦૩) ટીકાનો અર્થ–ઉપશાંત ચિત્તવાળા મુનિ નંદે નીચે લખ્યા મુજબ, અંતિમ આરાધના કરી(૧) કાલ-વિનય આદિ આઠ પ્રકારના જ્ઞાનાચારમાં જે કઈ અતિચારનું સેવન કર્યું હોય તેની ગહ કરૂં છું. ० १, विनय २, महुभान 3, 64ान ४, मनिक ५, सूत्र ६, ७, तgan [सूत्र भने म ॥२८९॥ । શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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