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________________ ज्ञानवन्द्रिका टीका-उपासकदशास्वरूपवर्गनम्. ६०५ प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दयन्ते निदर्यन्ते उपदर्श्यन्ते । स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरणकरणप्ररूपणा आख्यायते । संख्येयानि अक्षराणि' इत्यादीनामाः पूर्ववबोध्याः । उपसंहरन्नाह–ता एता उपासकदशा इति ॥ सू० ५१॥ अष्टमाङ्गस्य स्वरूपमाह मूलम् से किं तं अंतगडदसाओ ?, अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहा इहलोइयपरलोइयइढिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ परियाया सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ आघविज्जति ।अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगठ्याए अहमे अंगे। एगे सुयक्खंधे, अहवग्गा, अह उदेसणकाला, अह समुदेसणकाला, संखेज्जाइं निरूपण करते समय सूत्र ४५में लिखा जा चुका है। इस प्रकार यहां यह चरण करण का आख्यान प्रज्ञापन आदि किया गया है। यहां "प्रज्ञाप्यन्ते" आदि पांच पदों का संग्रह समझ लेना चाहिये। इनका अर्थ पहले कहा जा चुका है। यह उपासकदशांग के स्वरूप का वर्णन हुआ । सू० ५१ ॥ સુધીનાં પદોને અર્થ આચારાંગનું સ્વરૂપનિરૂપણ કરતી વખતે લખાઈ ગયે છે. આ રીતે તેમાં ચરણ કરjનું આખ્યાન, પ્રજ્ઞાપન આદિ કરાયું છે. અહીં “प्रज्ञाप्यन्ते " मा पांय पहोना सब सम से नये. तभनी मय પહેલાં કહેવાઈ ગયું છે. આ ઉપાસક દશાંગનાં સ્વરૂપનું વર્ણન થયુ | સૂ. ૫૧ / શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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