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________________ १६२ नन्दील गर्भाशये समुत्पद्यन्ते ते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, शब्दार्थस्त्वेवम्-गर्भ-गर्भाशये, व्युत्क्रान्तिः उत्पत्तियेषां ते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, व्युत्क्रान्ति-शब्दोऽत्रोत्पत्तिवाची। यद्वागर्भाद्-गर्भावासाद् व्युत्क्रान्तिनिष्क्रमणं येषां ते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः । ते द्विधामनुष्याः१, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकारश्चेति । गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यास्त्रिधा भवन्तिकर्मभूमिजाः, अकर्मभूमिजाः, अन्तीपजाश्चेति ॥ मूलम्-जइ गब्भवकंतियमणुस्साणं, उप्पज्जइ किं कम्मभूमिय-गब्भवतियमणुस्साणं ? अकम्मभूमिय-गब्भवतियमणुस्साणं ?, अंतरदीवगगब्भवतियमणुस्साणं?, गोयमा! कम्मभूमिय-गब्भवतिय-मणुस्साणं उप्पज्जइ, नो अकम्मभूमिय-गब्भवतिय-मणुस्साणं, नो अंतरदीवग-गब्भवक्रतिय-मणुस्साणं॥ के होता है । इस विषय में यदि विशेष जानना हो तो आवश्यकसूत्र की हमारी बनाई मुनितोषिणी टीका देखना चाहिये। जिन जीवों की उत्पत्ति गर्भाशय से होती है वे गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं। गर्भ-गर्भाशयमें जिन जीवों की व्युत्क्रान्ति-उत्पत्ति होती है वे गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं, यह गर्भव्युत्क्रान्तिक का शब्दार्थ है । अथवा गर्भ से जिनका व्युत्क्रान्तिनिष्क्रमण-निकलना-होता है वे गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं । गर्भव्युत्क्रान्तिक जीव दो प्रकार के होते हैं-एक मनुष्य, दूसरे पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक । गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य भी कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, एवंअन्तरद्वीपज, इस तरह तीन प्रकार के होते हैं। प्रन्द्रह कर्मभूमियों में, जो उत्पन्न होते हैं वेकर्मभूमिज मनुष्य कहलाते हैं । तीस अकर्मभूमियों में जो उत्पन्न होते हैं वे अकर्मभूमिज मनुष्य कहलाते हैं, एवं छप्पन अंतरद्वीपों में जो उत्पन्न होते हैं वे अन्तरद्वीपज मनुष्य कहलाते हैं । જોઈએ. જે જીવની ઉત્પત્તિ ગર્ભાશયમાંથી થાય છે તેઓ ગર્ભવ્યુત્કાન્તિક છે. ગર્ભાશયમાં જે જીવેની વ્યુત્કાન્તિ (ઉત્પત્તિ) થાય છે તેઓ ગર્ભવ્યુત્કાતિક છે, આ ગર્ભવ્યુત્કાન્તિકને શબ્દાર્થ છે. અથવા ગર્ભમાંથી જેમની વ્યુત્કાન્તિ (નિષ્કમણ, (નિકળવાનું) થાય છે તેઓ ગર્ભવ્યુત્કાન્તિક છે. ગર્ભવ્યુત્કાન્તિક જીવ બે પ્રકારના હોય છે–એક મનુષ્ય, બીજાં પંચેન્દ્રિયતિર્યચનિક. ગર્ભવ્યુત્કાન્તિક મનુષ્ય પણ કર્મભૂમિજ, અકર્મભૂમિ એટલે કે ભંગભૂમિજ, અને અન્તરદ્વીપજ, આ રીતે ત્રણ પ્રકારનાં હોય છે. પંદર કર્મભૂમિઓમાં, ત્રીસ અકર્મભૂમિઓમાં અને છપ્પન અંતરદ્વીપમાં જે ઉત્પન્ન થાય છે, તેઓ કર્મભૂમિ જ, અકર્મભૂમિજ અને અન્તરદ્વીપજ મનુષ્ય કહેવાય છે. શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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