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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ स्थलचरजीवनिरूपणम् पल्योपमानि व्याख्याता। जघन्यिका जघन्यैव जघन्यिका स्वार्थे कः, कायस्थितिः, अन्तर्मुहूर्तम् ॥ अन्वयार्थ-(थलयराणं कायठिई-स्थलचराणाम् कायस्थितिः) इसी तरह इन स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यश्च जीवोंकी कायस्थिति ( उक्कोसेण-उ. स्कर्षण ) उत्कृष्टसे (पुव्वकोटिपुहत्तेणं तिणि पलियोवमाइं वियाहियापूर्वकोटिपृथक्त्वेन त्रीणी पल्योपमानि व्याख्याता) पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीनपल्यकी एवं (जहन्निया अंतोमुहुत्तं-जधन्यिका अन्तर्मुहूर्तम् ) जधन्यसे एक अन्तर्मुहूर्तकी कही गई है । यहां यह विशेषता है कि गर्भजभुज परिसर्प एवं गर्भज उरःपरिसर्पकी आयुस्थिति पूर्वकोटिकी होती है तथा संमूच्छिम जन्मवाले भुजपरिसर्पकी आयु बयालीस हजार वर्षकी तथा उरः परिसर्पको तेपन ५३ हजार वर्षकी आयु होती हैं। संमूच्छिम स्थलचर जीवोंकी आयु सामान्यरूपसे चोरासी ८४ हजार वर्ष प्रमाणकी होती है । ३ तीन पल्योपम प्रमाण जो उत्कृष्ट आयु यहां स्थलचर तिर्यञ्चोंकी कही गई है वह भोगभूमिके तिर्यञ्चोंकी अपेक्षासे कही गई है। यह स्थिति उनकी भवस्थिति है। कायस्थितिका विचार इस प्रकार है--मनुष्य हो या तिर्यश्च हो सबकी जघन्य कायस्थिति तो भवस्थितिके समान अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही है। स्थलचर जीवोंकी कायस्थिति अन्वयार्थ-थलयराणं कायठिई-स्थलचराणाम् कायस्थितिः ॥ प्रमाणे २॥ २५२२ पयन्द्रिय ति य वानी यस्थिति उक्कोसेण-उत्कर्षेण उत्कृष्टया पुवकोटिपुहत्तेणं तिन्निपलियोवमाई वियाहिया- पूर्वकोटि पृथक्त्वेन त्रीणि पल्योपमानि व्याख्याता पूटर पृथइवथी मधिः १ पदयनी मने जहन्निया अन्तोमुहुत्तंजघन्यिका अन्तमुहूर्त्तमू धन्यथी मे मतभुताना मायेa छे. मडीया એ વિશેષતા છે કે, ગર્ભજ ભૂજગરિસર્ષ અને ઉર પરિસર્ષની આયુરિથતિ પૂર્વ કેટીની હોય છે તથા સંમૂર્ણિમ જમવાળા ભુજપરિસર્ષની આયુ Wी २ ( ४२००० ) वर्षनी तथा ७२:५रिसपंनी तेपन M२ (પ૩૦૦૦) વર્ષની આયુ હોય છે. સંમૂછિમ સ્થળચર જીની આયુ सामान्य ३५थी यार्यासी २ (८४०००) वर्ष प्रमाणुनी राय छे. १५ પપમ પ્રમાણ જે ઉત્કૃષ્ટ આયુ અહીં સ્થળચર તિર્યંચોની કહેવાયેલ છે છે તે ગભૂમિના તિર્યંચોની અપેક્ષાથી કહેવાયેલ છે. આ સ્થિતિ તેમની લવસ્થિતિ છે. કાયસ્થિતિને વિચાર આ પ્રમાણે છે-મનુષ્ય હેય અગર તે તિર્યંચ હય, સઘળાની જઘન્ય કાયસ્થિતિ તે ભવસ્થિતિના સમાન અંતમુહૂર્ત उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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