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प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ जलचरजीवनिरूपणम्
'एगा य पुव्वकोडी उ' इत्यादि
जलचराणामायुःस्थितिः, उत्कर्षेण एकां च पूर्वकोटिं व्याख्याता, जघन्यिका तु अन्तर्मुहूर्तम् । इह स्थितिः संमूर्छिमानां गर्भजानां च तुल्यैव ॥ १७६ ॥ 'पुव्व कोड़ि हत्तंतु' इत्यादि
चराणां कार्यस्थितिस्तु उत्कर्षेण पूर्वकोटिपृथक्त्वं व्याख्याता, तत्र पृथक्त्वं द्विप्रभृतिनवपर्यन्तम् । ततवेह अष्टपूर्वकोटयः कार्यस्थितिर्जलचराणां भवति । इयतीचैषां कायस्थितिरित्थं स्यात्, पञ्चेन्द्रिय तिर्यङ्मनुष्याणां उत्कृष्टतोऽप्यष्टैव
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अन्वयार्थ - ( जलयराणं आऊ ठिई-जलचराणाम् आयुः स्थितिः ) इन जलचर जीवोंकी आयुस्थिति (उक्कोसेण एगा पुव्वकोडी उ जहनिया अन्तोमुहुत्तं - उत्कर्षेण एका पूर्वकोटिं जघन्यिका अन्तर्मुहूर्तम् ) उत्कृष्टकी अपेक्षा एक पूर्वकोटि प्रमाण तथा जघन्यकी अपेक्षा एक अन्तर्मुहर्त्तकाल प्रमाण कही गई है ॥ १७६ ॥
अन्वयार्थ - ( जलयराणं कायठिई - जलचराणाम् कार्यस्थितिः ) तथा इन जलचर जीवोंकी कार्यस्थिति ( उक्कोसेण - उत्कर्षेण ) उत्कृष्टकी अपेक्षा ( पुव्वको डिपुहत्तं - पूर्वकोटि पृथक्त्वम् ) पूर्वकोटि पृथक्त्व एवं ( जहन्नया - जयन्यिका) जघन्यकी अपेक्षा (अंतोमुहुत्तं - अन्तर्मुहूर्तम् ) एक अन्तर्मुहूर्त कही गई है ।। १७७ ॥
अन्वयार्थ - ( जलयराणं - जलचराणाम् ) जलचर जीवों का (सए कोए विजदम्मि - स्वके कार्य त्यक्ते ) अपने शरीर के छोड़ने पर पुनः उसी शरीरमें आने तक का ( अंतरं - अन्तरम् ) विरहकाल ( उक्कोसं - उत्कृ ष्टम् ) उत्कृष्ट ( अनंतकालम् अनंतकालम् ) निगोदकी अपेक्षा
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उत्तराध्ययन सूत्र : ४
मन्वयार्थ – जलयराणं आउठिई - जलचराणाम् आयुः स्थितिः मा जयर लवोनी मायुस्थिति उक्कोसेण एगा पुव्व कोडी उ जहन्निया अन्तोमुहुत्तं - उत्कर्षेण एकां पूर्वकोटिं जघन्यका अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टनी अपेक्षाथी मे पूर्व अटि प्रभाशु તથા જઘન્યની અપેક્ષાથી એક અંતર્મુહૂત કાળપ્રમાણ ખતાવેલ છે. ।।૧૭૬।। अन्वयार्थ – जलयराणं कायठिई - जलचराणाम् कायस्थितिः तथा આ भजथर पोनी अयस्थिति उक्कोसेण- उत्कर्षेण उत्सृष्टनी अपेक्षाथी पूब्बकोडी पुहत्तं - पूर्वकोटी पृथक्त्वम् पूर्व पृथत्व ने जहन्निया - जघन्यिका ४धन्यनी अपेक्षाथी अंतोमुहुत्तं - अन्तर्मुहूर्त्तम् तमुहूर्त वामां आवे छे.।१७७८ अन्वयार्थं—जलयराणं- जलचराणाम् ४जयर लवोना सए काए विजढम्मिस्वके काये त्यक्ते पोताना शरीरने छोडीने इरीथी मेन शरीरमा भाववा सुधीना अंतरं - अन्तरम् विरड्डाण उक्कोसं उत्कृष्टम् उत्हृष्ट अनंतकाल - अनन्तकालम् निगोहनी उ-११२