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उत्तराध्ययनसूत्रे _ 'संतई पप्प' इत्यादि। इतः प्रभृति गाथापञ्चकं प्राग-व्याख्यातप्राय सुगमं च । १५१ ॥ चतुरिन्द्रियाणां चतुरिन्द्रियजीवानाम् आयुः स्थितिः भवस्थितिः, उत्कर्षेण षड्मासानेव व्याख्याता । जघन्यिका तु अन्तर्मुहूर्तम् ॥१५५॥
पञ्चेन्द्रिय जीवानाहमूलम्-पंचिंदिया उ जे जीवा, चउविहा ते वियाँहिया ।
नेरइय तिरिक्खा ये, मण्या देवी य आहिया ॥१५६॥ अणेगहा-एवमादयः अनेकधा) इसी तरह और भी चतुरिन्द्रिय जीव हैं। (ते सव्वे-ते सर्वे) ये सब (लोगस्स एगदेसम्मि-लोकस्य एकदेशे) लोकके एक भागमें रहते हैं (परिकित्तिया-परिकीर्तिता) ऐसा वीतराग प्रभुने कहा है (संतई पप्प-सन्ततिं प्राप्य) इत्यादि ये चतुरिन्द्रिय जीव, प्रवाह की अपेक्षा अनादि एवं अनन्त हैं (ठिइं पडुच्च-स्थिति प्रतीत्य ) स्थिति की अपेक्षा सादि और सान्त हैं (छच्चेव मासाउ-षडेव मासान् ) इन चतुरिन्द्रिय जीवोंकी आयुः स्थिति उत्कृष्ट छह महीनोंकी है और जघन्य अन्तर्मुहूर्तकी है। (काउ ठिई-कायस्थितिः) इनकी कायस्थिति लगातार चतुरिन्द्रियके शरीरको नहीं छोड़ने पर उत्कृष्ट संख्यातकालकी है अघन्य अन्तर्मुहूर्तकी है। इनका (अंतरं-अन्तरं) अन्तर-विरहकाल निगोदकी अपेक्षा उत्कृष्ट अनन्तकालका और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्तका है। इन चतुरिन्द्रिय जीवोंके वर्णगंधरसस्पर्श और संस्थानरूप देशकी अपेक्षा से और भी बहुतसे भेद हैं ॥१४६से१५५॥ एवमादयः अनेकधा मावी शत पी५ ५५ यार धन्द्रिय ७१ छे. ते सव्वे-ते सर्वे ते सघा लोगस्स एगदेसम्मि-लोकस्य एकदेशे बोना से नाममा २७ छ. परिकित्तिया-परिकीर्तिताः पात। प्रभुणे यु छ. संतई पप्प-सन्तति प्राप्य આ ચાર ઈન્દ્રિયવાળા જીવ પ્રવાહની અપેક્ષા અનાદિ અને અનંત છે. હું पडुच्च-स्थितिं प्रतीत्य स्थितिनी मपेक्षाथी साही मने शia छे. चच्चेवमासाવિમાસા– આ ચાર ઈન્દ્રિયવાળા જીવોની આયુસ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટ છ મહિનાની मन धन्य मतभुइतनी छ. तनी कायठिई-कायस्थितिः आयस्थिति मेधारी ચાર ઇન્દ્રિયના શરીરને ન છેડવાથી ઉત્કૃષ્ટ સંખ્યાત કાળની છે. જઘન્ય अतभुतनी छ. तेनी अंतरं-अन्तरम् मत२ (१२७४५ निगाहनी अपेक्षा ઉત્કૃષ્ટ અનંત કાળને અને જઘન્ય અંતમુહૂર્તનું છે. આ ચાર ઈન્દ્રિય જીવોના વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાનરૂપ દેશની અપેક્ષાથી બીજા પણ ઘણું ભેદ છે. મેં ૧૪૬ થી ૧૫૫ છે
उत्तराध्ययन सूत्र:४