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प्रियदर्शिनी टीका अ. ३६ पृथि वोकायजीवनिरूपणम्
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उत्कृष्टाःआयुःस्थितिः=भवस्थितिर्भवति । जघन्यका तु अन्तमुहूर्त्त यावद्भवति ॥ ८१ ॥ अथ पृथिवीकायजीवानां काय स्थितिमाह - मूलम् - असंखकालमुक्कासाँ, अंतर्मुहुत्तं जहन्निया । काठि पुढवणं, तं कायं तु अमुचओ ॥८२॥ छाया - असंख्यकालमुत्कृष्टा, अन्तर्मुहूर्तं जघन्यिका । कायस्थितिः पृथिवीनां तं कार्यं तु अमुञ्चताम् ॥८२॥ टीका- 'असंख्यकालं' इत्यादि
पृथिवीनाम् = पृथिवीकायजीवानां तं = पृथिवीरूपं, कायम् अमुञ्चतां मृत्वा मृत्वा तत्रैवोत्पद्यमानानाम्, काय स्थितिः कायः - पृथिवीकायः, तत्र स्थिति:अवस्थानम्, उत्कृष्टा, असंख्यकालम् - असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणोत्सर्पिण्यबावीस सहस्साई - वर्षाणां द्वाविंशति सहस्राणि) बाईस हजार (२२०००) वर्षकी ( उक्कोसिया आउ ठिई उत्कृष्टा आयुः स्थितिः ) उत्कृष्ट स्थिति होती है अर्थात् इन जीवोंकी बाईस हजार ( २२०००) वर्षोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति होती है ( जहन्निया - जघन्यका) तथा जघन्यभवस्थिति (अंतोमुहुत्तं - अन्तर्मुहूर्तकम्) एक अन्तर्मुहूर्तकी होती है ॥ ८१ ॥ कायस्थिति इन जीवोंकी इस प्रकार है- 'असंखकालं ' इत्यादि । अन्वयार्थ - - (पुढवीणं- पृथिवीनाम् ) पृथिवीकाय जीवोंकी ( तं कार्य अमुंचओ-तं कायं अमुञ्चताम् ) उस पृथिवीरूप शरीरको नहीं छोड़ते हुए अर्थात् मर मर कर वहीं पर उत्पन्न होनेवाले उन पृथिवीकाय जीवोंकी (कायठिई - कार्यस्थितिः ) कार्यस्थिति (उकोसा असंखकालंउत्कृष्टा असंख्यकालम् ) उत्कृष्ट असंख्यातकाल प्रमाण है अर्थात् असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल
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वर्षाणां द्वाविंशति सहस्राणि मावीस इन्नर ( २२०००) वर्षेनी उक्कोसिया आउठिई - उत्कृष्टा आयुः स्थितिः उत्ष्ट स्थिति होय छे अर्थात् मे भवानी मावीस डेन्नर (२२००० ) उत्ष्ट लव स्थिति होय छे. जहन्निया - जघन्यका तथा धन्य लवस्थिति अंतो मुद्दत्तं - अन्तर्मुहूर्त्तकम् मे अन्तर्भुङ्क्र्तनी होय छे ।। ८१ ।।
अयस्थिति मे भवानी मा प्रहारनी हाय छे - " असंखकाल” इत्याहि । अन्वयार्थ - पुढवीणं - पृथिवीनाम् पृथिवीय वना तंकार्य अमुचओ-तं कार्य अमुञ्चताम्' मे पृथवी३५ शरीरने न छोडतां अर्थात् भरी भरीने पण त्यांने त्यां ४ उत्पन्न थनार पृथवीय कवोनी कायठिई - कायस्थितिः अयस्थिति ઉત્કૃષ્ટ અસંખ્યાતકાળ પ્રમાણ છે, અર્થાત્ અસંખ્યાત લેાકાકાશ પ્રદેશ પ્રમાણ
उत्तराध्ययन सूत्र : ४