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________________ %3 - -- ६६८ उत्तराध्ययनसूत्रे टोका-'फासुयम्मि' इत्यादि भिक्षुः, परमसंयतः सन् , यद्वा-परमः-प्रधानः संयतः, जिनमार्गमपन्न इत्यर्थः, तस्यैव मोक्षमार्ग प्रतिवस्तुनः सम्यग् यत्नसंभवादितिभावः, मासुके अचित्तीभूते, अनाबाधे अविद्यमानाबाधा आत्मनः परेषां वा पीडा यत्र तत् अनाबाधं तस्मिन् , स्त्रीभिः-उपलक्षणत्वात् पशुपण्डकादिभिश्व, अनभिद्रुते अनाक्रान्ते वा, एतादृशे तत्र पूर्वगाथोक्ते श्मशानादौ वासम् अवस्थानं संकल्पयेत् सम्=सम्यक् कल्पयेत् कुर्यात्।। ननु 'पकडे' इति विशेषणं किमर्थं प्रोक्तमित्याशङ्क्याहमूलम्-न सेयं गिहाई कुठिवज्जा, नेवे अन्नहि कारए । गिहम्मसमारम्भे, भूयाणं दिस्सए वैहो ॥८॥ छाया-न स्वयं गृहाणि कुर्वीत, नैवान्यैः कारयेत् । गृहकर्मसमारम्भे, भूतानां दृश्यते वधः ॥८॥ टीका-'न सयं' इत्यादिगृहकर्मसमारम्भे गृहकर्म-गृहनिष्पत्यर्थ कर्म इष्टिकादिसमानयनादिकं तस्य 'फासुथम्मि' इत्यादि। अन्वयार्थ--(परमसंजए भिक्खू-परमसंयतः भिक्षुः ) सर्वोत्कृष्ट जिनमार्ग की आराधना करने में प्रयत्नशाली भिक्षु (फासुयम्मिप्रासुके) एकेन्द्रियादि प्राणिरहित तथा ( अणावाहे-अनाबाधे) स्वपर बाधा रहित तथा ( इत्थीहिं अणभिदुए-स्त्रीभिः अनभिद्रुते) स्त्री पशु पंडक आदि से रहित (तत्थ-तत्र) उस निरवद्य उपाश्रय में रागद्वेष रहित होकर (संकप्पए-संकल्पयेत ) रहने की इच्छा करे ॥७॥ पहले परकडे ' जो विशेषण दिया गया है वह किस कारण से ? इस शंका को निवारण करने के लिये कहते हैं-'न सयं' इत्यादि । अन्वयार्थ-(गिहकम्मसमारम्भे भूयाणं वहो दिस्सए-गृहकर्म " फासुयम्मि" त्या ! मन्क्याथ-परमसंजए भिक्खु-परमसंयतः भिक्षुः सर्वोत्कृष्ट छन भागनी साराधना ४२वामा प्रयत्नशाणी भिक्षु, फासुयम्मि-प्रासुके सन्द्रियात प्रालि डित तथा अणावाहे-अनाबाचे स्१५२नी मायाथी ति, तथा इस्थिहिं अणभि दुए-स्त्रीभिः अनभिद्रुते खी, पशु, ५४, मारिथी २डित तत्थ-तत्र से निराउपाश्रयमi रागद्वेष २डित मनान संकप्पए-संकल्पयेतू २३पानी ४२७. रे. ॥७॥ पsai २ “ परकडे " विशेष मापेत छे या ४१२थी ? से श निवारण ४२११ माटे ४३ छे-" न सयं" त्या ? अन्वयार्थ:-गिहकम्मसमारभ्मे भूयाणं वहोदिस्सए ५२ मनाया भाटे उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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