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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे स्वाध्यायस्य वाचनाप्रच्छना परिवर्तनाऽनुप्रेक्षाधर्मकथारूपस्य, एकान्तनिवेसणानियमत समाचरणम् , तत्राप्यनुप्रेक्षैव प्रधानमित्यभिप्रायेणाह-'सुत्तत्थसंचिंतणया' इति । सूत्रार्थसंचिन्तनता=मूत्रार्थसश्चिन्तना-मूत्रार्थस्य सम्यग्विचारणा, आषत्वात् स्वार्थे तल् । उक्तं च "कृया श्रुतमचिन्तितम् , ” इति । च-पुनः । धृतिः-धीरत्वम्-अनुद्विग्नत्वमित्यर्थः । नहि धृति विना ज्ञानादि. लाभ इति भावः । गुरुवृद्ध सेवादयः खलु मोक्षोपायभूतानां सम्यग्दर्शनादीनामुपायभूताः सन्तीति गुरुटद्ध सेवादिकं विना सम्यग्दर्शनादेरसम्भव इति गाथाशयः ॥ ३ ॥ करना और उस स्वाध्याय में (सुत्तत्थ संचिंतणया-सूत्रार्थसश्चिन्तनता) सूत्रार्थ अच्छी तरह विचार करना (धीई य-धृतिश्च ) एवं धैर्य रखना। भावार्थ--यथावस्थित शास्त्र के अर्थ को जो समझता हैं वे गुरु कहलाते हैं । धर्मशास्त्र के अर्थ का जो दूसरों को उपदेश देते है वे गुरु कहलाते हैं । अथवा जो दीक्षा प्रदान करते हैं वे गुरु कहलाते हैं। अथवा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र का जो पालन करते हैं वे तथा जो दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ होते हैं वे भी गुरु कहलाते हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, इन आचारों से श्रेष्ठ होते हैं वे वृद्ध हैं। इनके साथ विनयपूर्वक रहना' व्यवहार करना इनकी वैयावृत्य (सेवा) करना यह सब गुरुवृद्ध सेवा है । तथा गुरु कुल में रहना यह बात भी सेवा से उपस्थित हो जाती है क्यों कि गुरुकुल में निवास करने से जीव को सम्यग्दर्शन आदि गुणों की प्राप्ति सुलभ होती है । नियमयी स्वाध्याय ४२३। मन स्वाध्यायमा सुत्तत्थ संचिंतणया-सूत्रार्थ सञ्चिस्तनता साना सारी शत वियार ४२वो धीईय-धृतिश्च मन धैर्य राम. ભાવાર્થ–યથાવસ્થિત શાસ્ત્રના અર્થને જે સમજાવે છે, તે ગુરૂ કહેવાય છે. અથવા ધર્મશાસ્ત્રના અર્થને જે બીજાઓને ઉપદેશ આપે છે તે ગુરૂ કહેવાય છે, અથવા જે દીક્ષા પ્રદાન કરે છે તે ગુરૂ કહેવાય છે, તથા સમ્યગ્ગદર્શન, સમ્યગજ્ઞાન, અને સમ્યકૂચારિત્રનું જે પાલન કરે છે તે, તથા જે દીક્ષા પર્યા. यमा भोट हाय छ, त ५५ शु३ ४वाय छे. ज्ञान शन, यारित्र, त५, वीर्य, આ આચારાથી જે શ્રેષ્ઠ હોય છે તે વૃદ્ધ છે. એમની સાથે વિનયપૂર્વક રહેવું વહેવાર કર, વૈયાવૃત કરવી, એ સઘળી ગુરૂ-વૃદ્ધ સેવા છે. તથા ગુરૂકુળમાં રહેવું એ વાત પણ સેવાથી નક્કી થઈ જાય છે. કેમ કે, ગુરૂકુળમાં નિવાસ કરવાથી જીવને સમ્યગદર્શન આદિકોની પ્રાપ્તિ સુલભ થાય છે. કહ્યું પણ છે उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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