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________________ ३७० उत्तराध्ययनसूत्रे मृषावादाद् विरतः, अदत्ताद्-अदत्तादानाद् विरतः, मैथुनाद् विरतः परिग्रहाद् विरतः इत्यर्थः, प्राणातिपात विरमणादिपञ्चमहाव्रतधारक इति यावत् तथा रात्रि भोजनविरतश्च जीवः, अनासवः-आस्रवरहितः सन् , ओगन्तुकज्ञानावरणीयादिकर्मानुपार्जको भवतीति भावः ॥ २ ॥ मूलम्-पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइंदिओ। अगारंवो ये निस्संल्लो, जीवो होई अणासंवो ॥३॥ छाया-पञ्चसमित स्त्रिगुप्तः, अकषायो जितेन्द्रियः। अगौरवश्व निःशल्यो, जीवो भवति अनास्रवः ॥ ३ ॥ टीका-'पंचसमिओ' इत्यादि पञ्चसमितः पञ्चविधसमितिसमन्वितः, त्रिगुप्तः त्रिविधगुप्तियुक्तः, अकषायःक्रोधादिकषायचतुष्टयरहितः, जितेन्द्रियः श्रोत्रादिपञ्चन्द्रियनिग्रही, अगौरवः-ऋद्धि मृषावादसे विरत, अदत्तादानसे विरत, मैथुनसे विरत एवं परिग्रहसे विरत (राईभोयणविरओ-रात्रिभोजनविरतः) एवं रात्रिभोजनसे विरत (जीवा-जीवः) जीव (अनासवो भवइ-अनास्रवःभवति) आगन्तुक ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का उपार्जन नहीं करता है। अर्थात्-हिंसा झूठ चोरी आदि पांच पापोंसे विरत जीव नवीन कर्मों का बंध नहीं करता है।। पंचसमिओ' इत्यादि। ___अन्वयार्थ-(पंचसमिओ तिगुत्तो-पंचसमितः त्रिगुप्तः) पांच प्रकार की समितियोंसे युक्त (त्रिगुप्तः) मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एवं कायगुप्ति, इन तीन गुप्तियोंसे समन्वित (अकलायो जिइंदिओ-अकषायः जितेन्द्रियः) क्रोधादिक चार कषायोंसे रहित तथा पांचों इन्द्रियोंका निग्रही (अगारवोअगौरवः) ऋद्धिरस सात गौरवसे वर्जित एवं (निस्सल्लो-निःशल्यः) तहानी विरत भैथुनथी विरत, अने परिअडथा पिरत, राईभोयणविरओरात्रिभोजनविरतः ॥ विनयी पिरत, जीवो-जीवः ७१ मांगतु शाना १२વય આદિ કર્મોનું ઉપાર્જન કરતા નથી. અર્થાત-હિંસા, ગુઠ, ચેરી, આદિ पांय पापांथी वि२त 04 नवीन भान भय ४२तो नथी. ।। २॥ “पंच समिओ" त्याहि ! अन्वयार्थ-पंचसमिओ तिगुत्तो-पंचसमितः त्रिगुप्तः पांय प्रारी समिति. ચોથી યુક્ત મને ગુપ્તિ, અને કાયગુપ્તિ, આ ત્રણ ગુપ્તિયોથી સમન્વિત अकसायो जिइंदियो-अकषायः जितेन्द्रियः ओघाहिर या२ षायोथी हित तथा पाय धन्द्रियाना निडी, अगारवो-अगौरवः ऋद्धि२स सात गौरवयी १० उत्तराध्ययन सूत्र:४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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