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________________ %E ९७८ उत्तराध्ययनसूत्रे ___ सम्प्रति भावयतनामेव स्पष्टयतिमूलम्-इंदियंत्थे विवजित्ता, सज्झायं चेव" पंचहीं। तम्मुत्ती तप्पुरकारे, संजए ईरियं रिएँ ॥८॥ छाया-इन्द्रियार्थान् विवज्य, स्वाध्यायं चैव पञ्चधा। तन्मूर्तिस्तत्पुरस्कारः, संयत ईयाँ रीयेत ॥८॥ टीका--'इंदियत्थे' इत्यादि ।। इन्द्रियार्थान् शब्दादीन् , विवयं तदनध्यवसानतः परिहत्य, तथापञ्चधा-वाचनादि पञ्चप्रकारं स्वाध्यायं, चैव स्वाध्यायमपि, गत्युपयोगघातित्वात् परिहृत्य तन्मूर्तिः-तस्यामेव ईर्यायां व्याप्रियमाणा मूर्तिः शरीरं यस्य स तन्मृतिः, तथा-तत्पुरस्कारः-तामेव पुरस्करोति उपयुक्ततया प्राधान्येनागीकुरुते इति तत्पुरस्कारः । अनेन कायमनसोस्त देकाग्रत्वमुक्तम् । एवंभूतः सन् संयत ईर्या रीयेत-विचरेत् । दशबोलान् वर्जयन् गच्छेदिति भावः ॥८॥ उक्ता ईर्यासमितिः, अथ भाषासमितिमाहमूलम्-कोहे' माणे य मायाएं, लेोभे उवउत्तया। हासे भयमोहरिए, विकहाँसु तहेवं ये ॥९॥ अब इसी भाव यतना का स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'इंदियत्थे' इत्यादि। अन्वयार्थ-(इंदियत्थे पंचहा सज्झायं च विवजित्ता-इन्द्रियार्थान् पंचधा स्वाध्यायं च विवर्य) इन्द्रियों के शब्दादिक पांच विषयों को तथा वाचना आदि भेद से पांच प्रकार के स्वाध्याय को इन दश बोलों को वर्जकर (तम्मुत्ती तप्पुरकारे-तन्मूर्तिः तत्पुरस्कारः) केवल गमन में ही व्याप्रियमाण शरीर वाला मुनि गमन में ही एकाग्रचित्त होकर (ईरियंरिए-ईयां रीयेत) ईर्या में विचरण करें ॥८॥ वे मे N Iqयतनानु २५४४२४ ४२ता सूत्रा२ ४४ छ-"इंदियत्थे' त्या ! ____मन्वयार्थ -इंदियत्थे पंचहा सज्झायं च विवजित्ता-इन्द्रियार्थान् पंचधा स्वाध्यायं च विवयं धन्द्रियाना शह पाय विषयाने तथा यायना माहिना माथी चांय ४२ना स्वाध्यायने मा ४२ मोसोने पलने तम्मुत्तीतप्पुरकारे-तन्मूर्तिः तत्पु रस्कारः १७ मनमा ४ व्याप्रियमाणु शरीरवाजा भुनि गमनमा साययित्त मनी ईरियं रिए-ईयाँ रीयेत छरियाथी विय२९५ ४२. ८॥ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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