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________________ २०७ प्रियदर्शिनी टीका अ. २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम् एवं केशिना प्रोक्ते गौतमः प्राहमूलम्--तंओ के सिं बुवैतं तुं, गोयमो इणमब्बवी । पण्णा समिक्खए धम्म, तत्तं तत्तविणिच्छयं ॥२५॥ छाया--ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु, गौतम इदमब्रवीत् । प्रज्ञा समीक्षते धर्म,-तत्त्वं तत्त्व विनिश्चयम् ॥२५॥ टीका--'तओ' इत्यादि। ततः तदनन्तरं गौतमस्वामी पूर्वरीत्या ब्रुवन्तं पृच्छन्तं के शिनं के शिस्वामिनम् , इदं वक्ष्यमाणमुत्तरम् अब्रवीत् उक्तवान् । गौतमो यदुनरं दत्तवाँस्तदुच्यते 'पण्णा' इत्यादिना-हे भदन्त ! तत्त्वविनिश्चयं-तत्त्वानां जीवादीनां वीनिश्चयो= निर्णयो यस्मात्तत्तयाभूतं, धर्मतत्त्वं प्रज्ञा=बुद्धिः समीक्षते-पश्यति । अयं भावःन वाक्यश्रवणादेवार्थनिर्णयो भवति, किन्तु प्रज्ञावशादेव भवतीति । २५॥ मरूप दो प्रकार के धर्म में संशय नहीं होता है ?। जब दोनों की सर्वज्ञता में कोई भेद नहीं है तो फिर इस प्रकार से मुनिजन के चारित्र रूप धर्म में भेद का क्या कारण है ? ॥२४॥ ___ इस प्रकार केशिश्रमण के कहने पर गौतमस्वामी कहते है'तओ' इत्यादि। ___अन्वयार्थ-(तओ-ततः) इसके बाद (गोयमो-गौतमः) गौतम स्वामी ने (बुवंतं केसिं-ब्रुवन्तं केशिन) पूछते हुए केशिश्रमण कुमार से (इगमब्बवी-इदमब्रवीत् ) इस प्रकार कहा-हे भदन्त ! (तत्तविणिच्छयं-तत्त्व विनिश्चयम् ) तत्त्वों के विनिश्चायक (तत्तं-तत्व) धर्मतत्त्व को (पण्णा सामि क्खए- प्रज्ञा समीक्षते) बुद्धि देखती है-अर्थात् वाक्यश्रवण से अर्थ निर्णय नहीं होता है किन्तु प्रज्ञावश से ही होता है ॥२६॥ આ ચાતુર્યામ તથા પંચયામરૂપ બે પ્રકારના ધર્મમાં સંશય નથી આવ? જ્યારે બન્નેની સર્વજ્ઞતામાં કોઈ ભેદ નથી તો પછી આ પ્રકારથી મુનિજનના ચારિત્ર રૂપ ધર્મમાં ભેદનું કયું કારણ છે? રજા २मा प्रारना शीश्रमाना ४ाथी गौतमस्वामी ४३ छ--"तओं" त्याह! मन्वयार्थ --तओ-ततः माना पछी गोयमो-गौतमः गोतमामी बुवंत केसि-ब्रवन्तं केशिनम पछतां शोभा२ श्रमाने इणमब्बवी-इदमब्रवीत मा प्रमाणे ४यु, महन्त ! तत्तविणिच्छयं--तत्वविनिश्चयम् तत्वाना विनिश्वाय तत्त-तत्वं यतवन पण्णा समिक्खए-प्रज्ञा समीक्षते मुद्धि से छे. अर्थात वाय શ્રવણથી અર્થ નિર્ણય થતું નથી પરંતુ પ્રજ્ઞા વશથી જ થાય છે. રપા ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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