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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. २२ नेमिनाथचरितनिरूपणम् टीका-'सोऽरिटनेमि नामो' इत्यादि अरिष्टनेमि नामा स भगवान् लक्षणस्वरसंयुतः-तत्र लक्षणानि औदार्यगाम्भीर्यादीनि तैः सहितो यः स्वर: वनिस्तेन संयुतो युक्तः-माधुर्यादिगुणसंपन्नस्वरवान्, तथा-अष्टसहस्रलक्षणधर:-अष्टाधिक सहस्रम्-अष्टसहस्रम्, तत्संरव्य. कानि यानि शुभमचकानि लक्षणानि-हम्तपादादौ स्वस्तिकवृषभसिंह श्रीवत्सशङ्खचक्रगजाश्वच्छत्राब्धिप्रमुखाणि तार्थकृतां चितानि तेषां धरः धारकःतीर्थङ्करतानचक स्वस्तिकाद्यष्टोत्तरसहस्रलक्षणयुक्तः, गौतमः गौतमगोत्रोत्पन्नः, कालकच्छवि: श्यामकान्ति सुशोभितः, तु-पुनः-वज्रऋषभनाराचसहनन:-वज्रकीलकाकारमम्थि, ऋषभः पट्टाकृतिकोऽस्थिविशेषः, नाराचम्-उभयतो मर्कट बन्धः, एभिः संहननं शरीररचना यस्य स तथा, वज्रऋषभनाराचसंहननावानि सूत्रकार भगवान के रूप आदि का वर्णन करते हुए कहते हैं'सोरिट्ट' इत्यादि। अन्वयार्थ-(अरिट्टनेमि नामो सो-अरिष्टनेमिनामा सः) अरिष्ट नेमि नामवाले वे भगवान् ( लक्खणस्सरसंजुओ-लक्षणस्वरसंयुतः) माधुर्य गांभीर्य आदि लक्षणों से समन्वित स्वर वाले थे। (अट्ठसहस्स लक्खणधरो-अष्टसहस्रलक्षणधरः) हस्तपाद आदिकों में स्वस्तिक, वृषभ, सिंह, श्रीवत्स, शंख, चक्र, गज, अश्व, छत्र, समुद्र आदि शुभ सूचक एक हजार आठ १००८ लक्षणों को धारण किये हुए थे। (गोयमोगौतमः) गौतमगोत्र में उत्पन्न हुए थे। (काल गच्छवी-कालकच्छविः) कान्ति इनकी श्याम थी। (वजरिसहसंघयणो-वज्रऋषभसंहननः) वज्रऋषभनाराच संहनन वाले थे। कीलक के आकारवाली हड्डि का नाम वज्र है, पट्टाकार हड्डी का नाम ऋषभ है। उभयतः मर्कटबंध का नाम नाराच है। इनसे जो शरीर की रचना होती है उसका नाम वज्र सूत्रा२ भगवानना ३५ माहिनु वन ४२i ४छ, “सोरिद्व" त्यादि सन्वयाथ-अरिट्टनेमिनामो सो-अरिष्टनेमिनामा सः मरिष्टनेमि नामवाणा ते भावान माधुयशनीय Aणयुक्त स्व२वा ॥ ता. अट्ठसहस्सलकालणधरो -अष्टसहस्रलक्षणधरः बाथ ५मा साथिया, वृषभ, सिड, श्रीवास, शम, य, ગજ, અશ્વ, છત્ર, સમુદ્ર, વગેરે શુભસૂચક એક હજાર આઠ ૧૦૦૮ લક્ષણોને ધારણ ४२ तi.गोयमो-गौतम गोतम भात्यन्न याडता कालगच्छवी-काल कच्छविः तेमनी xi-ती श्याम ती. बजरिसहसंघयणो-वनऋषभसंहननः अपन, નારા, સંહનનવાળા હતા. ખીલ આકારના હાડકાનું નામ વા છે. પટ્ટાકાર હાડ કાનું નામ સાષભ છે. ઉભયતઃ મર્કટબંધનું નામ નારી છે. તેનાથી શરીરની જે उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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