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________________ प्रियदर्शिनी टीका २० महानिर्ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम् इह हेतुमाह ६११ मूलम् - विसं तु पीयें जंह कालंकूड, हणाइ संत्थं जह कुहीयं । ऐसो विधम्मो विसवण्णो, हणाइ वेयाल इवाविवण्णो ॥४४॥ छाया - विषं तु पीतं यथा कालकूट, हन्ति शस्त्रं यथा कुगृहीतम् । raise विषयोपपन्नो, हन्ति वेताल इवाविपन्नः ||४३|| टीका- 'विसं तु' इत्यादि । यथा तु का विष=कालकूटारव्य विषं पीतं सन् पानकर्तारं हन्ति, यथाच कुगृहीतं = विपरीततया गृहीतं शस्त्र धारणकर्तारं हन्ति इव यथा अविपनः = मन्त्रादिभिरवशीकृतो वेतालः साधकं इन्ति तथैत्र - विषयोपपन्नः शब्दादि को लेकर भी जो ऋषिचिह्नों को सिर्फ पेट भरने के ख्याल से ही धारण करता है वह असंयमी ही है और वह बहुत कालतक भी इस भवभ्रमणरूप पीडा से छुटकारा नहीं पा सकता है ||४३|| इसमें हेतु कहते हैं - 'विसंतु' इत्यादि । अन्वयार्थ - ( जहा पीयं कालकूडं विसं हणाइ - यथा पीतं कालकूटं विषं हन्ति) जिस प्रकार पिया हुआ कालकूट विष पीने व ले के प्राणों का अपहारक होता है अथवा ( जहा- यथा) जैसे (कुग्गहीयं सत्थं हणाइकुगृहीतं शस्त्र हन्ति) विपरीतपने से ग्रहण किया हुआ शस्त्र धारण करनेवाले का विनाश कर देता है अथवा (इव) जैसे (अपिवण्णो वेयाल हणाइ - अविपन्नः वेतालः हन्ति) मन्त्रादिकों द्वारा वश में नहीं किया गया वेताल वशमें करने वाले साधक का ध्वस कर देता है उसी तरह (विसवण्णो-विषयोपपन्नः) शब्दादिविषयरूप भोगा की लोलुपता ઋષિચિન્હાને કુકત પેટ ભરવાના ખ્યાલથી જ ધારણ કરે છે તે અસયમી છે અને તે ધણા કાળ સુધી પણ આ ભત્ર ભ્રમરૂપ પીડાથી છુટકારો મેળવી શકતે નથી. ૫૪૩૫ यामां हेतु हे छे– “बिसंतु" त्यिाहि ! सान्वयार्थ - जहा पीयं कालकूडक्सिं हणाइ यथा पीतं कालकूटं विषं हन्ति જેવી રીતે કાળફૂટ વિષ પીનારા પ્રાણીના પ્રણાનેા નાશ કરનાર બને છે અથવા जहा - यथा प्रेम कुग्गहीयं सत्थं हणाइ-कुगृहीतं शस्त्रं हन्ति षी रीते धारण ४२वामां आवेल शस्त्र धारण १२ रनो विनाश पुरी हे छे. अथवा प्रेम अविव वेयाल हणाइ - अत्रिपन्नः वेतालः हन्ति मंत्राहि अधी वशमांन ४२वामां मावेस वैता उत्तराध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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