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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. १९ मृगापुत्रचरितवर्णनम् % तथा-- मूलम् -अणिस्सिओ इहं लोए, परलोएं अणिस्सिओ। वासीचंदणकप्पो य, असंणेऽणसणे तहा ॥९२॥ छाया--अनिश्रित इह लोके, परलोके अनिषितः । वासीचन्दनकल्पच, अशनेऽनशने तथा ॥९२॥ टीका--'अणिस्सिओ' इत्यादि । स मृगापुत्र मुनिः इहलोके-ऐहलौकिके राजादिसम्माने अनिश्रितः निश्रारहितः, परलोके देवलोक सम्बन्धिसुखोपभोगादौ च अनिश्रित:-निश्रारहितो जातः। उक्तं चापि-- 'णो इह लोगट्टयाए तवमहिडिज्जा नो परलोगट्टयाए तवमहिडिजा।' इति । च-पुन:वासीचन्दनकल्पो जात-वासीव घासी तम्, अपकारिणमित्यर्थः' चन्दनमिव उपकारकत्वेन कल्पयति मन्यते इति वासीचन्दनकल्पः तथा--'अणिस्सिओ' इत्यादि। अन्वयार्थ-वे मृगापुत्र मुनिराज तपस्याकी आराधना से (इहलोएइहलोके) इहलोक संबंधी राजादिक द्वारा प्राप्त सन्मान आदिके विषय में जिस तरह ( अणिस्सिो -अनिश्रितः) निश्रारहित बन चुके थे उसी तरह वे (परलोए अणिस्सिओ-परलोके अनिश्रितः) देवलोक संबंधी सुख के उपभोग आदि में भी निश्रा रहित बने। इह लोक के लिये तप नहीं करना चाहिये इस पर कहा भी है_ 'णो इह लोगट्टयाए तवमहिडिजा नो परलोगट्टयाए तवमहिडिजा' इसी तरह उनकी चित्तवृत्ति भी (वासीचंदणकप्पो य-वासीचन्दनकल्पश्च) तथा- "अणिस्सिओ" त्या ! स-क्या-ये भृगाधुन मुनिशन तपस्याना माराधनाथी इहलोए-इहलोके આ લોક સંબધી રાજાદિક દ્વારા પ્રાપ્ત સન્માન આદિના વિષયમાં જે રીતે अणिस्सिओ-अनिश्रितः निश्री रडित मनी गया हता. मी ते परलोए अणिस्सिओ-परलोके अनिश्रितः ५२४-३४ सेवि सुमन BAnाहिमा પણ નિશ્રા રહિત બન્યા. આ લેક અને પરલોકના માટે તપ ન કરવું જોઈએ. આના ઉપર કહ્યું પણ છે – " णो इह लोगट्टयाए तब महिटिजानो परलोगट्टयाए तवमहि द्विजा" मा शते मेमनी चित्तवृत्ति पषु वासीचंदणकप्पो य-वासीचन्दनकल्पश्च ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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