SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ उत्तराध्ययन सूत्रे सुधर्मास्वामी प्राहमूलम् - इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिदूाणा पण्णता जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाबिहुले गुत्ते गुनिंदिए गुत्तरं भयारी सया अप्पमते विहरेजा ॥३॥ छाया - इमानि खलु तानि स्थविरैर्भगपद्धिर्दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि यानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य संयमबहुलः संरबद्दलः समाधिबहुल: गुप्त गुप्तेन्द्रिया गुप्तब्रह्मचारी सदा अप्रमत्तो विहरेत् ||३|| टीका- 'इमे खलु' इत्यादि - हे जम्बू ! 'थेरेहिं' स्थविरैः भगवद्भिः प्रज्ञप्तानि कथितानि तानि दश प्रवर्य समाधिस्थानानि खलु इमानि वक्ष्यमाणानि सन्ति । शेषं पूर्ववत् ||३|| जंबूस्वामी के प्रश्न का उत्तर सुधर्मास्वामी इस सूत्र द्वारा देते हैंइमे खलु० ' इत्यादि 6 अन्वयार्थ - हे जम्बू ! (थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेर समाहिाणा पण्णत्ता - स्थविरैर्भगवद्भिर्दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि तानि खलु इमानि ) स्थविर भगवंतो ने जो ब्रह्मवर्य समाधि के दश स्थान प्ररूपित किये हैं वे ये हैं कि (जे भिक्खु सोच्चा० – यानि भिक्षुः श्रुत्वा० ) जिनको भिक्षु गुरुमुख से सुनकर और उनको हृदय में धारणकर संयमीजन अच्छी तरह संयम की आराधना करने वाले हो जाते हैं संवर तत्व से अच्छीतरह सुशोभित होने लगते हैं अच्छी तरह समाधि से संपन्न बन जाते हैं, गुप्त-मन वचन काया को गोपने वाले हो जाते हैं तथा गुप्तेन्द्रिय-इन्द्रियों को वश में कर लिया करते हैं एवं गुप्तજમ્મૂસ્વામીના પ્રશ્નના ઉત્તર સુધર્માસ્વામી આ સૂત્ર દ્વારા આપે છે. “इमे खलु” धत्याहि ! अन्वयार्थ - हे थेरेहिं भगवंतेहिं दस बभचेरसमाहिद्वाणा पण्णत्तास्थविरैर्भगवद्भि देश ब्रह्मच समाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि स्थविर लगवतोये व्यर्थसमाधिना में हरास्थान प्र३चित रेस छे ते मे छे ! जे भिक्खू सोच्चायानि भिक्षुः श्रुत्वा लक्षु गुरुमुभथी सांलजीने याने मेने हृध्यमां धारण अरीने સંયમીન સારી રીતે સંયમની આરાધના કરવાવાળા બની રહે છે. સ’વરતત્વથી સારી રીતે સુગેાભિત બની જાય છે. સમાધિમાં સ ંપૂર્ણપણે તત્પર ખની રહે છે, ગુપ્ત મન, વચન, કાયાને ગેાપવાવાળા થઈ જાય છે. તથા ગુપ્તેન્દ્રિય ઇન્દ્રિયાને ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy