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________________ ५०४ उत्तराध्ययनसूत्रे नासि ! यो हि सुखोचितः सुकुमारः सुखोचितत्वादियुक्तस्त्वं श्रामण्यमनुपाल. यितुं समर्थों भवितुं नाहेसीति भावः ।३४॥ ___ असमर्थतामेव दष्टान्तैः समर्थयन्नाहमूलम्-जावजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महभंगे। गईओ लोहभारोव, जो पुत्तो! होई दुव्वहो ॥३५॥ छाया--यावज्जीवमविश्रामो, गुणानां तु महाभरः । गुरुको लौहभार इव, यः पुत्र ! भवति दुवेहः ॥३५॥ टीका--'जावजीव' इत्यादि। हे पुत्र । चारित्रसम्बन्धिनां गुणानां मूलोत्तरगुणानां तु यो महाभर:= महाभारः स लोहमार इव गुरुको गरिष्ठः, तथा-यावज्जीवम् अविश्रामः नास्ति विश्रामो यस्मिन् स तथा, अत एव दुर्वहा=दुःखेन बोहव्यो भवति । भो पुत्र ! त्वं श्रामण्यमनुपालयितुम् प्रभुः न भवसि) अतः तुम पूर्वोक्तगुणवाले इस श्रामण्य पद को पालन करने के लिये समर्थ नहीं हो सकते हो। जो सुखोचित सुकुमार एवं सुमजित नहीं होता, हे पुत्र ! वही इस श्रामण्यपदको कदाचित् पाल सकता है। तुम्हारे जैसे लाडले राजकुमार नहीं ॥३४॥ अब चारित्र पालनेकि असमर्थता को दृष्टान्तों से कहते हैं'जावजीव' इत्यादि। अन्वयार्थ-(पुत्ता-पुत्र) हे पुत्र ! (गुणाणं-गुणानाम्) चारित्र संबंधी मूलगुणों एवं उत्तरगुणों का भार कोई मामूली भार नहीं है यह तो (महन्भरो-महाभारः) बहुत भारी भार है। (लोहभारोव्च गरुओ-लोहभार इव गुरुकः) लोहेका जैसा भार बहुत भारी होता है ऐसा हुसी-हे पुत्र त्वं श्रमण्यमनुपालयितुं प्रभुः न भवसि २ाथी तु 24111 ४९सा ગુણવાવાળા આ શ્રમણ્ય પદનું પાલન કરવાને માટે સમર્થ થઈ શકીશ નહીં. જે સુખમાં ઉછરેલ સુકુમાર અને સમજ છત નથી હોતા તે શ્રમણ્યપદને કદાચિત પાળી શકે છે. પરંતુ હે બેટા ! તારા જેવો લાડીલે રાજકુમાર ન પાળી શકે. ૩૪ वे यास्त्रिपासननी असमय ताने दृष्टांतथी ४३ छ-"जावज्जीव" त्यilt. मन्वयाथ-पुत्ते-पुत्र पुत्र ! गुणाणं-गुणानाम् यात्रिसंधी भूण गुणे। भने उत्तर गुना ना ते भामुखी मार नथी. महब्भरो-महाभारः घणे।४ सारे भार थे. लोहमारोव्व गरुओ-लौहभार इव गुरुकः बढाना मार म भूम उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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