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________________ ५०३ प्रियदर्शिनी टीका अ. १९ मृगापुश्चरितवर्णनम् एवं षण्णां व्रतानां दुष्करतां परीषहसहनदुष्करतां चाभिधाय स्ववक्तव्यमुपसंहर्तुमाहमूलम्--सुहो इओ तुमं पुत्ता, सुकुमालो सुमॅजिओ। ने हसि पहुं तुमं पुत्ता !, सामण्णमणुपालिउं ॥३४॥ छाया-सुवोचितस्त्वं पुत्र !, सुकुमारः सुजितः।। न भवसि प्रभुस्त्वं पुत्र !, श्रामण्यमनुपालयितुम् ॥३४॥ टीका--'सुहो इओ' इत्यादि। हे पुत्र ! त्वं सुरखोचितः-सुख-सातं तस्य उचितोयोग्योऽसि, सुकुमारः सुकोमलः, सुमज्जित सुस्नपितः, उपलक्षणत्वात्-सकलनेपथ्यभूषितश्चासि । अतो हे पुत्र ! त्वं श्रामण्यं पूर्वोक्तगुणरूपं चारित्रमनुपालयितुं प्रभुः समर्थो न भवसिअपने केशों का लोच भी करना पड़ता है। ब्रह्मचर्यव्रत की आराधना करनी पड़ती है। बेटा! ये सब वृत्तियां तुम से आचरित जन्मभर नहीं हो सकती हैं। क्यों कि ये सब बडी दारुण हैं । अतः घर पर ही रहो ॥३३॥ छह व्रतोंकी तथा परीषह सहन करने की दुष्करता को दिखलाकर उपसंहार करते हुए मृगापुत्र के मातापिता अपना कर्तव्य कहते हैं 'सुहाइओ' इत्यादि। अन्वयार्थ-(पुत्ता-हे पुत्र !) हे पुत्र ! (तुमं सुहोइओ-त्वं सुखोचितः) तुम तो सुख भोगने के लायक हो। कारण कि (सुकुमालोसुकुमारः) तुम सुकुमार हो। (सुमजिगो-सुमजितः) तुमको मैंने अच्छी तरह से स्नान, गंध, लेपन एवं आभूषण आदि से सुसंस्कृत कर पाला पोसा है। (पुत्ता तुमं सामण्णमणुपालिउं पहु न हुसिપણ કરતા નથી. આ અવસ્થામાં સાધુએ પિતાના વાળને લેચ કરે છે, બ્રહ્મચર્ય વ્રતની આરાધના કરવી પડે છે. બેટા! આ સઘળી વૃત્તિઓ તારાથી જન્મભર આચરી શકાશે નહીં. કારણ કે, તે ખૂબ જ કઠણ છે, માટે ઘેર જ રહે. ૩૩ છે છએ વ્રતને તથા પરીષહ સહન કરવાની દુષ્કરતા બતાવીને ઉપસંહાર કરતાં भृगापुत्रना मातापिता पाताना अभिप्रायने ४३ छ-"सुहाइओ" त्याह. मन्या -पुरे-पुत्र पुत्र ! तुमं महोइओ-त्वं सुखोचितः तारी भ२ सुम Anाने साय: छे, ।२९५ , तु सुकमालो-मुकुमारः सुमार छ. तने में सुमजिणो-सुमजितः सारी रात स्नान, य, वेपन पोथी तथा माभूषण पोथी सुAnd ४१२ पाणे पोषेत छ. पुत्ता तुमं समण्णमणुपालिउं पहु न ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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