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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. १५ गा. ८ भिक्षुगुणप्रतिपादनम् इत्यादि । वास्तुविद्या प्रासादादिनिर्माणे शुभाशुभकथनम् , अङ्गविकारं-शिरःस्फुरणादि-शुभाशुभकथनम्। तथा-स्वरस्य विजयम् -स्वरस्य-पक्ष्यादिशब्दस्य विजयः शुभाशुभकथनम् । एताः विद्याःसन्ति । य एताभिर्विद्याभिन जीवति= जीविकां न करोति, स भिक्षुरुच्यते ॥७|| तथामूलम्-मंतं मूलं विविहं विजेचिंतं, वमण-विरेय॑ण-धूम-नेत्त-सिणाणं। आउरे सरणं तिर्गिच्छियं च, तै परिन्नाय परिवए से भिक्खू ॥८॥ छाया--मन्त्रं मूलं विविधा वैद्यचिन्तां, वमन-विरेचन-धूम-नेत्र-स्नानम् । आतुरे स्मरणं चिकित्सितं च, तत्परिज्ञाय परिव्रजेत् स भिक्षुः ॥८॥ छठवा निमित्तज्ञान है, लक्खणं-लक्षणं, गज, घोडा तथा स्त्री पुरुषो आदि को लक्षणों को देखकर उनका शुभाशुभ कथन करना । सातमा निमित्तज्ञान है (दण्डवत्युविज़-दण्डवास्तुविद्याम् ) दंडके एक पर्व अथवा दो पर्व देखकर उसके भले बुरे का कथन करना एवं प्रासाद आदि की रचना देखकर उसका शुभाशुभ का कथन करना (अंगवयारंअङ्गविकार) अंगो के फरकने आदि से शुभाशुभ का कहना (सरस्त विजयं -स्वरस्य विजयः) पक्षी आदि के शब्दों द्वारा शुभाशुभ जानना ये सब निमित्तज्ञान हैं। इनका नाम निमित्तविद्या भी है (जे विजाहिं ण जीवई स भिक्खु-ये विद्याभिन जीवति स भिक्षुः) इन विद्याओं द्वारा जो मुनिजीविका नहीं करता है उसका नाम भिक्षु है। अर्थात् इन आठो अंग में कहे हुवे निमित्तो को नहीं कहता वही साधु है ॥७॥ छ निमित्तज्ञान के लकवणं-लक्षणं हाथी घोड। मने स्त्री पुरुष! माहिना લક્ષણોને જોઈને એના શુભાશુભનું કથન કરવું સાતમું નિમિત્તજ્ઞાન છે હ વધુ विजं-दंडवास्तुविद्याम् ६४ वास्तुविधा-नां मे ५ अथवा मे ५ धने તેના સારાબુરાનું કથન કરવું તેમ જ મહાન આદિની રચના જોઈને તેના શુભાशुमनु ४थन ४२. अंगवियारं-अङ्गविकारम् गोनु ५२४ मनिथी शुभाशुम सरस्स विजयं-स्वरस्य विजयः पक्षी माहिना शहीद्वारा शुभाशुभ पु. मा सघणा निमित्तज्ञान छ. मेनु नाम निभित्तविधा ५५ छ जे विजाहि ण जीवई स भिक्खू-ये विद्याभिन जीवति स भिक्षुः ॥ विद्या द्वारा मुनि આજીવિકા ચલાવતા નથી. એનું નામ ભિક્ષુ દે. અર્થાત–આ આઠે અંગેમાં કહેલ નિમિત્તોને કરતા નથી તેજ સાધુ છે. જે ૭ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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