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________________ - - प्रियदर्शिनी टीका अ. १८ महापद्मकथा २४७ तथामूलम्-चइत्ता भारहं वासं, चकवट्टी महिडिओ। चइत्ता उत्तमे भोगे, महापंउमो तैवं चरे ॥४१॥ छाया-त्यक्त्वा भारतं वर्ष, चक्रवर्ती महर्दिकः । त्यक्त्वा उत्तमान् भोगान, महापद्मस्तपोऽचरत् ॥४१॥ टीका-'चइत्ता' इत्यादि। महर्दिक:-चतुर्दशरत्ननवनिधानादियुक्तो मुनि सुव्रतशाससे महापद्मनामा नवमः चक्रवर्ती भारतं वर्ष त्यक्त्या, तथा-उत्तमान् भोगान् त्यत्वा तपः अचरत ॥४१॥ हजार साधुओं के साथ अनशन करके आयुके अन्त में सिद्धिपद प्राप्त किया ! इन्द्रों एवं देवोंने मिलकर इनका निर्वाणमहोत्सव मनाया ॥४०॥ ॥ इस प्रकार यह अरनाथ प्रभुकी कथा है ॥ तथा-'चइत्ता' इत्यादि। अन्वयार्थ-(महडिओ-महर्द्धिकः) चौदह रत्न एवं नवनिधि आदि महाऋद्धियों के अधिपति (चक्कवट्टी-चक्रवर्ती) नवमचक्रवर्ती (महापउमों -महापद्मः) महापद्मने जो मुनि सुव्रत स्वामी के शासनकाल में हुए हैं। (भारहं वासं चइत्ता-भारतं वर्षम् त्यत्तवा) इस समस्त भारतवर्ष का परित्याग करके तथा (उत्तमे भोगे चइत्ता-उत्तमान् भोगान् त्यक्त्वा) उत्तम भोगोंका परित्याग करके (तवं चरे-तपः अचरत् ) तपस्याकी आराधना की। और सकल कर्मों का क्षय करके मोक्ष पधारे ॥४१॥ એક હજાર સાધુઓની સાથે અનશન કરીને આયુષ્યના અંતમાં સિદ્ધિપદને પ્રાપ્ત કર્યું. ઈન્દ્ર અને દેવાએ મળીને તેમને નિર્વાણુ મહત્સવ મનાવ્યું. જેના છે આ પ્રમાણે અરનાથ પ્રભુની આ કથા છે. तथा-"चइत्ता" भन्याय-महडिओ-महर्दिकः यौहरन भने ननिधी I महा ऋद्धि सोना मधिपति चक्कचट्टी-चक्रवर्ती नभा पता महापउमो-महापनः महा५५ ते। भुनि सुव्रत स्वाभीना शासन सभा या छे. भारहं वासं चइत्ता-भारतं वर्षम स्यत्वा मा सघा सारत ने परित्याग ४शन तथा उत्तमे भोगे चइत्ता-उत्तमान् भोगान त्यक्त्वा उत्तम सोगानी परित्याग ४शन तवं चरे-तपःअचरत તપસ્યાની આરાધના કરી, તથા સકળ કને ક્ષય કરીને મેક્ષમાં પધાર્યા ૪૧ उत्त२॥ध्ययन सूत्र : 3
SR No.006371
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1051
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size58 MB
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