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________________ उत्तराध्ययनस्ने किंच-'घटोऽयम्' इति व्यवहारो यथैकस्मिन् परमाणौ न भवति तथा'अयमात्मा' इत्यात्मनोऽपि निर्देशः खल्वेकस्मिन् प्रदेशे न भवति (३) इति सप्तमपक्षस्य विकल्पत्रयम् ॥७॥ (८) ननु कस्य नयस्यैवं मतम् ? इति चेत् , उच्यते-एवंभूताख्यस्य नयस्येदं मतम् । एवं भूतत्वं च-पदानां व्युत्पत्यर्थान्वयनियतार्थबोधकत्वेनाभ्युपगन्तव्यम् । नियमच कालतो देशतश्चेति न समभिरूढेऽतिव्याप्तिः। ए भूतनयमाश्रित्यभगवता-" जम्हा णं कसिणे पडिपुण्णे लोगागासपएसतुल्ले जोवेत्ति वत्तव्वं " इत्युक्तम् । तेन यावन्तोऽसंख्यातप्रदेशा लोकाकाशतुल्याः जीवस्य सन्ति, ते सर्व समुदिता एवं प्रदेशाः पूर्णो जीवः, नत्वेकश्वरमो वा प्रथमो वा द्वितीयादि और भी-जिस प्रकार एक परमाणु में " घटोऽयम्" इत्याकारक व्यवहार नहीं होता है उसी तरह एक जीवप्रदेश में भी "अयं आत्मा" इत्याकारक व्यवहारका निर्देश नहीं हो सकता है (३) ये सातवें पक्ष के तीन विकल्प हुए ।। ७॥ (८) इस प्रकार का वह किस नय का अभिमत है ?, उत्तर-इस प्रकार का यह अभिमत एवंभूत नय का है । व्युत्पत्ति से लभ्य अर्थ के संबंध से जिस में नियतार्थबोधकता (निश्चित अर्थ को समझाने की शक्ति) हो वही एवंभूतनय है। नियतार्थबोधकता इस में काल की एवं देश की अपेक्षा से जानना चाहिये । इस प्रकार समभिरूढनय से इसकी अतिव्यासि नहीं होती है । इसी एवंभूतनय को आश्रित कर भगवान ने "जम्हाणं कसिणे पडिपुण्णे लोगागासपएसतुल्ले जीवेत्ति वत्तव्वं सिया" यह सूत्रालापक कहा है। इस २ प्रारे ४ ५२भामा “घटोऽयम् " त्या४।२४ पडेपार थत नथी तवी शत में प्रदेशमा ५५ " अयं आत्मा" त्या४।२४ पडेपार - निश-थ शत नथी. (3) सातमा पक्षन । ऋण वि४६५ च्या. ॥७॥ (८) मा प्रा२नी च्या नयना मलिभत छ ? ઉત્તર–આ પ્રકારને એ અભિમત એવંભૂત નયને છે. વ્યુત્પત્તિથી લભ્ય અર્થના સંબંધથી જેમાં નિયતાથ બોધતા (નિશ્રીત અને સમજવાની શક્તિ) હોય તે એવંભૂત નય છે. નિયતાર્થ બેધકતા તેમાં કાળની અને દેશની અપેક્ષાથી જાણવી જોઈએ. આ પ્રકારે સમભિરૂઢ નયથી તેની અતિવ્યાપ્તિ થતી नथी. 20 भूत नयने साश्रीत ४ मगवान "जम्होणं कसिणे पडिपुण्णे लोगागासपयेसतुल्ले जीवेत्ति वत्तव्वं सिया" मा सूत्रादाय ४९ छे. माथी ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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