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प्रियदर्शिनी टीका. अ० ३ गा. २ मनुष्यजन्मनो दौलभ्यम् =एकेन्द्रियादिषु समापन्नाःयाप्ताः, प्रजाः जन्तवः, नानाविधानि अनेकप्रकाराणि कर्माणि-ज्ञानावरणीयादीनि, कृत्वा पृथक् एकैकशः लोकाकाशस्यैकैकप्रदेशे एकैकयोनिसमुत्पन्नतया सूक्ष्मपृथिव्यादिस्थावरकायैलॊकाकाशस्य संभृतत्वात् विश्वभृतः सर्वस्थानपूरकाः भवन्ति । उक्तश्च
नत्थि किर सो पएसो, लोए वालग्गकोडिमेत्तो वि ।
जम्मणमरणावाहा, जत्थ जिएहिं न संपत्ता ॥१॥ छाया-नास्ति किल स प्रदेशो, लोके बालाग्रकोटिमात्रोऽपि ।
जन्ममरणाबाधा, यत्र जी वैर्न संप्राप्ता ॥ १ ॥ हुआ है । (संसारे-संसारे) संसार में (नाणागोत्तासु-नानागोत्रातु) अनेक प्रकार के कुलों से संपन्न (जाइसु-जातिषु) एकेन्द्रियादिक योनियों में (समावन्ना-समापन्नाः) उत्पन्न हुए (पया-प्रजाः) ये जीव (नाणाविहा-नानाविधानि ) अनेक प्रकारके (कम्मा कडु-कर्माणि कृत्वा) ज्ञानावरणीयादिक कर्मों का बंध कर (पुढो--पृथक् ) लोकाकाश के एक प्रदेश में एक एक योनि में उत्पन्न होकर (विस्संभया-विश्वभृतः) उस के समस्त स्थानों को भर दिया है । उक्तञ्च
नास्थि किर सो पएसो, लोए बालग्गकोडिमेत्तो वि ।
जम्मणमरणाबाहा, जत्थ जिएहिं न संपत्ता ॥१॥ छाया-नास्ति किल स प्रदेशो, लोके बालाग्रकोटिमात्रोऽपि
जन्ममरणाबाधा, यत्र जीवन सम्प्राप्ता ॥१॥ लोकाकाश का ऐसा कोई सा भी प्रदेश नहीं बचा जा इस जीव छ. संसारे संसारमा नाणागोत्तासु-नानागोत्रासु मने ॥२गोथी संपन्न जाइसु-जातिषु मेन्द्रियाहि योनिमामा समावन्ना समापन्ना उत्पन्न यये पया-प्रजाः से १ नाणाविहा-नानाविधानि मन ४१२ना कम्माकट्ठ-कर्माणि-कृत्वा ज्ञाना१२. थीयाहि भनि। म ४२॥ पुढो-पृथक् दे शना प्रत्ये प्रदेशमा ४ योनीमा उत्पन्न थऽ विस्स भया विश्वभृतः सेना समस्त स्थानाने भरी घेत छ. युं ५ छ
नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमेत्तो वि।
जम्मणमरणाबाहा जत्थ जिएहिं न संपत्ता ॥१॥ छाया-नास्ति किल स प्रदेशो, लोके बालाग्रकोटि मात्रोऽपि ।
जन्ममरणाबाधा, यत्र जीवन सम्पाप्ता ॥१॥ કાકાશમાં એ કેઈપણ પ્રદેશ નથી બચ્ચે કે, જે પ્રદેશ જીવે પિતાના उ० ७९
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧