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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे मानुषत्वं दुर्लभमित्यत्र दश दृष्टान्ताः प्रदर्श्यन्ते, तद् यथा - चोल्लकः १, पाशकः २, धान्यं ३, द्यूतं ४, रत्नं ५, स्वप्नः ६, चक्रं ७, कूर्मः ८, युगं ९, परमाणुः १० । ५७४ अथ प्रथमश्वोल्लकदृष्टान्तः - चोल्लको भोजनं तदुपलक्षितो दृष्टान्तः प्रोच्यतेकाम्पिल्यन गरे ब्रह्मनामको नृपतिरासीत्, तस्य भार्या चुलनीनाम्नी, पुत्रो ब्रह्मदत्तनामकः । तस्मिन् ब्रह्मनृपतौ मृते सति तत्पुत्रस्य ब्रह्मदत्तस्य बाल्यावस्थां विलोक्य ब्रह्मनृपसुहृद् दीर्घपृष्ठनामको नृपस्तद्राज्यं रक्षति । तदनन्तरं स नहीं हो सकता है उसी तरह इन मानुषत्व आदि चार अंगों की प्राप्ति हुए विना मुक्ति की प्राप्ति जीव को नहीं हो सकती है । " मानुषत्वं दुर्लभं " मनुष्यपन की प्राप्ति महादुर्लभ है, इस विषय में दश दृष्टान्त कहे जाते हैं, जैसे- चोल्लक १, पाशक २, धान्य ३, छूत ४, रत्न ५, स्वप्न ६, चक्र ७, कूर्म ८, युग ९ परमाणु १० । चोल्लक नाम भोजनका है। इससे उपलक्षित होने से चोल्लक को भी दृष्टान्त कह दिया गया है । यह प्रथम चोल्लकदृष्टान्त इस प्रकार है कांपिल्य नगर में ब्रह्म नाम का राजा था । इसकी स्त्री का नाम चुलनी और पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त था । राजा ब्रह्म के काल प्राप्त हो जाने के बाद ब्रह्मदत्त की बाल अवस्था देखकर " राज्य में अव्यवस्था न फैल जाय " इस दृष्टि से राजा ब्रह्म के मित्र दीर्घपृष्ठ नाम के राजा ने उसके राज्य को संभाल लिया। जब कुछ समय व्यतीत हो गया થઈ શકતું નથી, એજ રીતે આ માનુષત્વ આદિ ચાર અગાની પ્રાપ્તિ થયા વિના મુકિતની પ્રાપ્તિ જીવને થઈ શકતી નથી. मानुषत्वं दुर्लभ मनुष्यपथानी प्राप्ति महादुर्लभ छे, या विषयभां ह दृष्टांत हेवामां आवे छे. नेम-योट्स १, पाश २, धान्य 3, धूत ४, रत्न थ, स्वप्न ६, ७, ८, युग है, पर भालु १०. ચાલક નામ ભાજનનુ છે એથી ઉપલક્ષિત થવાથી ચોલકનું પણ દૃષ્ટાંત કહેવામાં આવેલ છે. આ પ્રથમ ચૌલકષ્ટાંત આ પ્રકારનુ છે. કાંપિલ્ય નગરમાં બ્રહ્મનામના રાજા હતા. તેની સ્ત્રીનું નામ ચુલની અને પુત્રનું નામ બ્રહ્મદત્ત હતું. રાજા બ્રહ્મની કાળપ્રાપ્તિ પછી, બ્રહ્મદત્તની માળ અવસ્થા જોઈ ને “ રાજ્યમાં અવ્યવસ્થા ન ફેલાઈ જાય” આ દૃષ્ટીથી રાજા બ્રહ્મના મિત્ર દિપૃષ્ટ નામના રાજાએ તેના રાજ્યને સભાળી લીધુ. શેઢા ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર ઃ ૧
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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