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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० २ सू० १ द्वाविंशतिपरीषहप्रस्तावः २६९ काश्यपेन-काश्यपगोत्रेण, भगवता महावीरेण श्रीवर्धमानस्वामिना प्रवेदिताः= केवलालोकेन स्वयं साक्षात्कृत्य प्रतिबोधिता इत्यर्थः।। यान्=परीषहान् , भिक्षुः साधुः श्रुत्वा सविनय सादरं कर्णगोचरीकृत्य, ज्ञात्वा परीषहैः पराभूतस्य चतुर्विधसंसारपरिभ्रमणं, परीषहविजयिनस्तु मोक्षमार्गादपच्युतिः कर्मनिर्जरा च भवति' इत्यवबुध्य, जित्वा-वीर्योल्लासेन विजयं कृत्वा, अभिभूय धैर्येण तत्सामर्थ्यमुपहत्य भिक्षाचर्यायां-भिक्षाटने, परिव्रजन् विचरन् , जो समस्त जीवों में-त्रस एवं स्थावरों में समानदृष्टि रखनेवाले होते हैं, एवं जो घोर तपस्या करते हैं उनका नाम श्रमण है। इन परीषहों को (जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नोविनिहन्नेज्जा) जो भिक्षु 'सोचा' गुरु के समीप सुनकर, तथा 'नच्चा' "जो भिक्षु इन परीषहों से पराभूत हो जाता है वह चतुर्विध संसार के चक्कर से बच नहीं सकता है तथा जो इन्हें जीत लेता है उसको मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है और उसके कर्मों की निर्जरा भी होती है" ऐसा जानकर, तथा 'जिचा' अपने वीर्योल्लास से उनको परिचित करके, तथा 'अभिभूय' धैर्यता से उनके सामर्थ्य को नष्ट करके भिक्षाचर्या निमित्त भ्रमण करता हुआ कदाचित् परीषहों से आक्रान्त होता है तो वह ज्ञान दर्शन चारीत्ररूप मोक्षमार्ग से प्रच्युत જે સમસ્ત જીવનમાં ત્રસ અને સ્થાવરમાં-સમાન દષ્ટિ રાખવાવાળા હોય छ. अनेरे घोर तपस्या ४२ छ मेनु नाम श्रम छ. जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विनिहन्नेज्जा सेवा परिषडान लि सोच्चा शुरुनी पासे सामनाने तथा नच्चा “२ मि એ પરિષહેથી પરાભૂત બને છે તે ચતુર્વિધ સંસારના ચક્રથી બચી શકતા નથી. તથા જે એને જીતી લે છે તેને મોક્ષ માર્ગની પ્રાપ્તિ થાય છે. અને તેના કર્મોની નિર્જરા પણ થાય છે. એવું જાણીને તથા ના પિતાના વિલાસથી તેને પરિચય કરીને, તથા ગરિમૂવ હૈયતાથી એના સામર્થ્યને નષ્ટ કરીને, ભિક્ષાચાર્યા નિમિત્ત ભ્રમણ કરતાં કરતાં કદાચ પરિષહેથી આક્રાંત થાય છે તે ते शान ४शन यात्रि२१५ मोक्ष माथी पाछन २२ “भिक्खायरियाए" मा ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧
SR No.006369
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages855
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size45 MB
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