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________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. १ असमाधिस्थानवर्णनम् २५ योर्मुहूर्त्तमात्रम् । सर्वसंकलनेन चतुस्त्रिंशदस्वाध्यायाः । कस्मिन् समये कस्याssगमस्य स्वाध्यायः कर्तव्यः ? इत्याह अनुयोगद्वार - दशवेकालिक - नन्दीत्राणामस्वाध्यायातिरिक्ते सर्वस्मिन काले स्वाध्यायः कर्तव्यः । आवश्यक सूत्रस्य तु सर्वदा स्वाध्यायः कर्तव्यः । आचाराङ्गाद्येकादशाङ्गाना मौपपातिकादिद्वादशोपाङ्गानां शेषसूत्राणां रात्रिदिवस्यप्रथमान्तिमप्रहरयोरेव मुहूर्त्तार्द्धमात्रमस्वाध्यायसमयं विहाय स्वाध्यायः कर्तव्यः | १४ | पृथ्वीकायस्य बहुरक्षाप्रकारेष्वेकतरं तद्रक्षाप्रकारमाह- 'ससरक्खे' - त्यादि । मूलम् - ससरक्खपाणिपाए ॥ सू० १५ ॥ छाया - सरजस्कपाणिपादः ॥ १५ ॥ १० में, इस रीति से दश तिथियों में रात और दिन अस्वाध्याय रहता है । ये दश अस्वाध्याय हैं । (१) आधे मुहूर्त शाम, (२) आधे मुहूर्त्त प्रातः, (३) मध्याह में एक मुहूर्त, (४) मध्यरात्रि में एक मुहूर्त्त । इन सबका संकलन करने से, ३४ चौंतीस अस्वाध्याय होते हैं । किस वख्त किस आगम का स्वाध्याय करना चाहिये सो लिखते हैं- अनुयोगद्वार, दशवैकालिक और नन्दी सूत्र का स्वाध्याय अस्वाध्याय कालसे अतिरिक्त सब काल में किया जाता है । आवश्यक सूत्रका तो सब काल में स्वाध्याय किया जाता है ! आचाराङ्ग आदि ग्यारह अङ्गों का और औपपातिक आदि बारह उपाङ्गों का रात और दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर के आधे मुहूर्त्त रूप अस्वाध्याय समय को छोडकर स्वाध्याय करना चाहिये | || सू० १४॥ તિથિઓએ દિવસ કે રાત્રે અસ્વાધ્યાય રહે છે, આ પ્રમાણે દશ અસ્વાધ્યાય છે. (१) मरध मुहूर्त सांबे, (२) रध मुहूर्त प्रातः अणे, (3) मध्याहने मे મુહૂર્ત, (૪) મધ્યરાત્રિએ એક મુહૂત અસ્વાધ્યાય છે. આ સત્તા સરવાળા કરતાં કુલ ૩૪ ચાત્રીસ અસ્વાધ્યાય થાય છે, કરે વખતે કયા આગમના અસ્વાધ્યાય રાખવા જોઈએ. તે લખે છે:-- अनुयोगद्वार दशवैकालिक तथा नन्दी सूत्र नो स्वाध्याय, स्वाध्याय डालने छोडीने जीन सर्वाणे झुरी शाय छे. आवश्यक सूत्र तो सर्वश्रणे स्वाध्याय पुरी शाय छे. आचारांग माहि अगियार मंगोनो तथा औपपातिक महिगार यांगोनो स्वाध्याय રાત્રિએ અને દિવસના પ્રથમ અને છેલ્લા પ્રહરના અર્ધ મુહૂત રૂપ અસ્વાધ્યાય સમય છેાડીને કરવા જોઈએ (સૂ॰ ૧૪) શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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