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________________ निहर्षिणी टीका अ. १ असमाधिस्थानवर्णनम् १७ टीका- ' कोहणे ' इति । स्वपरसन्तापकस्तीव्रकषायीत्यर्थः तस्मात् समाधिमिच्छुना क्षमाशीलेन भाव्यम् ॥ ९ ॥ मूलम् - पिट्टिमंसिए ॥ सू० १० छया पृष्टमांसिकः ॥ १० ॥ टीका- ' पिडिमंसिए' इति । अत्र पृष्ठशब्दः परोक्षार्थपरः, मांसशब्दः परदूषणाविष्करणार्थपरः ' पिट्टिमंस न खाइज्जा' इति भगवद्वचनात् तेनपृष्ठे = परोक्षे मांसं = परदोषाविष्करणमस्यास्तीति पृष्ठमांसिक: = परोक्षे परदूषणाविष्कारक इत्यर्थः, निन्दकः स्वगुणनाशकः सर्वैर्निद्यश्च भवति ॥ १० ॥ मूलम् - अभिक्खणं अभिक्खणं ओहारयित्ता भवइ ॥ ११ ॥ छाया - अभीक्ष्णमभीक्ष्णमवधारयिता भवति ॥ ११ ॥ टीका- 'अभिक्खण' - मित्यादि । अभीक्ष्णमभीक्ष्णं पुनः पुनः अवधा ' कोहणे ' इति । स्व और पर को सन्ताप करने वाला तीव्रकषायी होता है अतः समाधि की इच्छा करने वाले को क्षमाशील होना चाहिये ॥ ९ ॥ 'पिट्ठिमंसिए' इति । 'पिसि न खाइज्जा' भगवान् के इस वाक्य से यहाँ पृष्ठि शब्द का अर्थ परोक्ष (पीछे) और मांस शब्द का अर्थ दूसरों के दोष को कहना होता है । तात्पर्य यह है कि जो पीछे निन्दा करनेवाला है वह निन्दक अपने गुणों का नाश करता है और वह सर्वनिन्दनीय होकर असमाधिस्थान का भागी होता है ॥ १० ॥ ' अभिक्खणं ' इत्यादि । बारंबार निश्चयकारी भाषा बोलने वाला असमाधि दोष का ' कोहणे ' इति स्व. तथा पर ने संताय ४२वावाणा तीव्रषायी थाय छे. मेथी સમાધિની ઇચ્છા કરવાવાળાએ ક્ષમાશીલ થવું જોઇએ (૯) 'पिट्ठिमंसिए ' त्याहि. , ' पिडिमंस न खाइज्जा' लगवानना या वायथी अडीं 'पृष्ठि' शब्दो અથ પરાક્ષ (પાછળ) તથા માંસ શબ્દના અર્થ બીજાના દોષને કહેવા, એવા થાય છે, તાત્પર્ય એ છે કે જે પાછળથી નિન્દા કરવાવાળા છે તે નિન્દક પોતાના ગુણાને નાશ કરે છે તથા તે સનિન્દનીય થઈને અસમાધિસ્થાન દોષના ભાગી થાય છે. (૧૦) શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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