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मुनिहर्षिणी टीका अ.७भिक्षुपतिमाधारिकल्पवर्णनम् मनतिक्रम्य कल्पानुसारमित्यर्थः, यथामार्ग-ज्ञान-दर्शन-चारित्रलक्षणमोक्षमा
नतिक्रमेण क्षयोपशमभावानतिक्रमेण वा, यथातत्वंतत्त्वानतिक्रमेण 'यथातथ्य - मितिच्छायापक्षे सत्यानुसारमिति, यथासाम्यम्=समभावमनतिक्रम्य सुष्टुपकारेण कर्मनिर्जरणभावनयेत्यर्थः कायेन शरीरेण न पुनरभिलाषमात्रेण स्पृष्टा-समुचितकाले सविधिग्रहणात् , पालयिता-वारंवारमुपयोगेन तत्परत्वात् , शोधयिता-पारणकदिने गुर्वादिदत्तावशिष्टभोजनात् अतीचारपङ्कक्षालनात् , तीरयित्वा-पूर्णेऽपि तदधौ स्वल्पकालावस्थानात् कीर्तयिता-पारणादिने 'इदं च दिनकृत्यं, तच्च मया कृत'-मित्येवं कथयिता, आराधयिता-अतिचारादिवर्जनेन समाराधयिता, आज्ञाया भवनिदेशस्यानुपालयिता-तत्परिपालनशीलो भवति १ ॥ सू० २२ ॥
॥ इति प्रथमा भिक्षुप्रतिमा ॥ १ ॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूपी मोक्षमार्ग के अनुसार अथवा क्षायोपशमिक भावों के अनुसार 'अहातच्चं '-जिनेन्द्रप्रतिपादित तत्व के अनुसार, 'अहासम्म'-समभाव से-जिस प्रकार कमों की निर्जरा हो उस प्रकार की भावनापूर्वक शरीर से ‘फासित्ता'-स्पर्श करने वाला, 'पालिता'बारम्बार उसका उपयोगपूर्वक पालन करने वाला, 'सोहिता'-पारणा के दिन गुरु आदि के द्वारा दिये गये अवशिष्ट अशनादि का भोजन करने से अथवा अतिचार पंक के धोने से शोधन करने वाला, 'तीरिता'प्रतिमा की अवधि पूर्ण होजाने पर भी पारणा के समय थोडी देर ठहरने वाला, 'किट्टिता'-पारणा के दिन " यह दिनकृत्य है, उसको मैंने पूरा किया" ऐसा कहने वाला, 'आराहिता '-अतिचार आदि 'अहाकप्पं' स्थवि२ मा ४८५नी मनुसार, 'अहामग्गं' शान, शन, २२३३५ भाक्षमागनी अनुसार अथवा क्षाया५शभिड लावानी अनुसार 'अहातच्चं' मिनेन्द्रप्रतिपादित तत्वनी अनुसार, 'अहासम्म' समसाथी रे ॥२ भनी निon हाय ते प्रा२नी भावनापू' शरीरथी 'फासिता' २५श ४२१4tan 'पालिता' पा पार तेन उपयोगपूर्व ४ पासन ४२११, 'सोहिता' पायाने हिवस गुरु मानिए । અપાયેલ અવશિષ્ટ અશન આદિનું ભજન કરવાથી અથવા અતિચાર પંકના છેવાથી शाधन ४२वावाजा 'तीरिता' प्रतिभानी मवधि पूरी / rdi ५॥ पा२॥न समये थोडीपा२ २॥४वाणा, किट्टिता'- पाने हिवस -हिवसनुं कृत्य छे ते में ५३
શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર