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________________ १८८ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रे अनुकूलवचनं स्पर्शः= शीतोष्णादिः, रसः = मधुरादिः, रूपं नीलपीतादिकम्, गन्धः कस्तूरिकाधामोदः, माल्यं = जातीप्रभृतिकुसुमरचितमाला, अलङ्कारः = केयूरादिभूषणम् - एभ्यो यावज्जीवमप्रतिविरतः, सर्वस्मात् शकटेत्यादि-शकटरथौ प्रसिद्धौ यानं= जल -- स्थल--नभोगमनसाधनं नौकावायुयानप्रभृतिलक्षणम्, युग्यम्-पुरुषद्वयोरिक्षप्तयानम् , गिल्लि:=पुरुषस्कन्धैरुह्यमाना दोल्लिका, थिल्लि:= वेसरादिवाह्ययानम् ‘खच्चरगाडी' इति भाषायाम्, शिबिका प्रसिद्धा 'पालखी' नास्तिकवादी फिर किस वस्तु से निवृत्ति नहीं करता है ? सो कहते हैं-'सबाओ कसाय० ' इत्यादि । ___ वह नास्तिकवादी सब प्रकार के कषाय आदि से निवृत्ति कर नहीं सकता । अर्थात् कषाय-पांच वर्ग के रंगे हुए वस्त्र आदि से तथा दन्तधावनकष्ठ सचित्त जलसे स्नान करना, शरीर पर तैल का मालिश करना, शरीरशोभा के लिए चन्दन आदि का लेप करना, अनुकूल वचन, शीत उष्ण आदि स्पर्श, मधुर आदि रस, नील आदि रूप, कस्तुरी आदि की सुगन्धि, जुही आदि पुष्पों की माला, केयूरभुजबन्ध आदि भूषण, इन से जावजीव निवृत्ति नहीं करता है । तथा सर्व शकट आदि से विरति नहीं करता है । अर्थात् शकट-गाडी, रथ, यान-जल स्थल आकाश आदि में चलने वाले नौका हवाई जहाज आदि, युग्य-दो पुरुषों द्वारा उठाया जाने वाला वाहन । गिल्लि-पुरुषों के कन्धे से उठा ये जाने वाला वाहन-डोला पालखी। थिल्ली खच्चरगाडी, शिबिका-पालखी, स्यन्दमानिका-जिस में केवल एक ही पुरुष - નાસ્તિકવાદી ફરી કઈ કઈ વસ્તુથી નિવૃત્તિ પામી શકતા નથી? તે કહે છે– 'सव्याओ कसाय.' त्याहि. તે નાસ્તિકવાદી તમામ પ્રકારના કષાય આદિથી નિવૃત્તિ પામી શકતું નથી– અર્થાત કષાય- પાચ જાતના રંગથી રંગાએલાં વસ્ત્ર આદિથી, તથા દંતધાવનકાષ્ઠ, સચિત્તજળથી સ્નાન કરવું શરીરની શોભા માટે ચન્દન આદિને લેપ કરવો, અનુકૂલવાણી, શીત–ઉષ્ણ આદિ સ્પર્શ, મધુર આદિ રસ, નીલ આદિ રૂપ, કસ્તુરી આદિની સુગન્ધિ, જુઈ આદિ પુષ્પોની માળા કેયૂ -ભુજબન્ધ આદિ ભૂષણ એનાથીજ જાવજીવ નિવૃત્તિ પામતા નથી. તથા સર્વ શકટ આદિથી વિરતિ લેતા નથી. અર્થાત શકટ ગાડી, રથ, યાન-જલ, સ્થળ, આકાશ આદિમાં ચાલવાવાળાં નૌકા, હવાઈજહાજ આદિ, युग्य मे पुरुषावा। GIsपामा मातi पाउन, गिल्लि- पुरुषांनी मांथा G3पामi RIqdi पान, 3el, सभी, थिल्लि ५२५२ usी शिबिका = सभी શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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