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चूणिभाष्यावचूरिः उ. १३ सू०१७-१३ अन्यस्थानां कौतुकक मकरणादिनिषेधः ३१५
सूत्रम्-जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा कोउगकम्म करेइ करेंतं वा साइज्जइ। सू० १७॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वागारत्थियाण वा भूइकम्मं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ।। सू० १८ ॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० १९|| जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २० ॥ जे भिक्खु अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पसिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २१ ॥ जे भिक्खू अण्णउत्यियाण वा गारत्थियाण वा पसिणापसिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २२॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा तीयं निमित्तं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू०२३॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा पडुप्पण्णं निमित्तं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २४ ॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारस्थियाण वा आगमिस्सं निमित्तं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ।। सू० २५|| जे भिक्खू अण्णउत्थियाण गारत्थियाण वा लक्खणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ। सू० २६॥जे भिवखू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा वंजणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २७॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा सुमिणं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ ।। सू० २८॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा विज्जं पउंजइ पउंज्जंतं वा साइज्जइ ॥ सू० २९॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा मंतं पउंजइ पउंजंतं वा साइज्जइ ॥ सू० ३०॥ जे भिक्खू अण्णउत्थियाण वा गारत्थियाण वा जोगं पउंजइ पउंजंतं वा साइज्जइ॥ सू०३१॥
- छाया-यो भिक्षुरन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा कौतुककर्म करोति कुर्वन्तं वा स्वदते ॥ सू० १७॥ यो भिक्षुःअन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा भूतिकर्म करोति, कुर्वन्तं वा स्वदते ॥सू० १८॥ थो भिक्षुरन्ययूथिकानां वा गृहस्थानां वा प्रश्नं करोति कुर्वन्त
શ્રી નિશીથ સૂત્ર