SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू० २६ मासपरिसमापकनक्षत्रनिरूपणम् ४४१ चत्वारि विशाखाऽनुराधा ज्येष्ठा मूलनक्षत्राणि मिलित्वा ज्येष्ठमासं परिसमापयन्तीति । ' तयाणं च रंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टई' तदा ज्येष्ठमासे खल चतुर गुलपौरुष्या छायया सूर्योऽनुपर्यटने एतदेव दर्शयति- 'तस्सणं' इत्यादि, 'तस्सणं मासस्स जे से चरिमे दिवसे' तस्य खलु ज्येष्ठमासस्य योऽसौ चरमः पर्यन्तवर्ति दिवसः 'तंसि च णं दिवसंसि दोपयाई चतारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ' तस्मिव खलु दिवसे द्वे पदे चत्वारि चाङ्गुलानि पौरुषी भवतीति । अथ चतुर्थ पृच्छति - गिम्हाण' इत्यादि, 'गिम्हाणं भंते ! चउत्थं मासं कइणक्खत्ता र्णेति' ग्रीष्माणां ग्रीष्मकालस्य भदन्त ! चतुर्थ माषाढमासं कति - कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तं गमनेन परिसमायन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! एवं राइदियं णे' मूल नक्षत्र ज्येष्ठमास के अन्त के एक रातदिन को समाप्त करता हैं । इस तरह से ये विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र ज्येष्ठ मास के परिसमापक कहे गये हैं 'तया णं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियह' इस ज्येष्ठ मास के अन्तिम दिन में चार अंगुल अधिक पौरुषी से युक्त हुआ सूर्य परिभ्रमण करता है। इसी बात को 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई चत्तारि य अंगुलाई पोरिसी 'भव' प्रकट करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा है, इसमें इस बात का पोषण किया है कि ज्येष्ठ मास अन्त के दिन में पौरुषी का प्रमाण चार अंगुल अधिक दो पद रूप होता है । 'गिम्हा णं भंते ! चउत्थं मासं कह णक्खत्ता णेंति' हे भदन्त ! ग्रीष्मकाल का जो चतुर्थमास आषाढमास है उसे कितने नक्षत्र अपने उदय के अस्तंगमन द्वारा परिसमाप्त करते हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! तिण्णि ज्येष्ठा नक्षत्र सात दिवस तिने समाप्त रे छे. 'मूलो एगं राईदियं णेइ' भूल नक्षत्र જ્યેષ્ઠમાસના છેલ્લા એક દિવસ રાતને સમાપ્ત કરે છે. આ રીતે, આ વિશાખા, અનુરાધા, ज्येष्ठा भने भूख नक्षत्र ज्येष्ठभासना परिसमा वामां आव्या छे- 'तयाणं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियदृइ' मा नेहभासना अन्तिम हिवसे यार भांगण अधिक पौषीथी युक्त थयेस सूर्य परिभ्रमण पुरे छे. आ वस्तुने 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई चत्तारिय अंगुलाई पोरिसी भवइ' प्र४८ १२वाना આશયે સૂત્રકારે પ્રસ્તુત સૂત્ર કહેલ છે જેમાં એ હકીકતની પુષ્ટી કરવામાં આવી છે કે જ્યેષ્ઠમાસના અન્તિમ દિવસે પૌરૂષીનું પ્રમાણ ચાર આંગળ અધિક એ પદ રૂપ હોય છે, ' गिम्हाणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता णेंति' हे लहन्त ! श्रीमानो यतुर्थમાસ જે અષાઢમાસ છે તેને કેટલા નક્ષત્ર પેાતાના ઉદયના અસ્તગમન દ્વારા પરિસમાપ્ત ५२ छे ? थाना नवायां अनु उहे छे- 'गोयमा ! तिणि णक्खत्ता णें ति' हे गौतम! २०५६ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy