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________________ ৪৪০। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पर्यन्तवर्ती दिवसः 'तंसि चणं दिवसंसि दोपयाई अटुं गुलाई पोरिसी भवई' तस्मिंश्च खलु दिवसे द्वे पदेऽष्टाङ्गुलानि पौरुषी भवतीति । 'गिम्हाणं भंते ! तच्चं कति णवखत्ता ऐति' ग्रीष्माणां ग्रीष्मकालस्य भदन्त ! तृतीयं ज्येष्ठलक्षणं मासं कति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तं गमनेन परिसमापयन्ति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि णक्खत्ता गति' चत्वारि-चतुःसंख्यकानि नक्षत्राणि ग्रीष्मकाल तृतीयमासं परिसमापयन्ति तानि कानि चत्वारि नक्षत्राणि तत्राह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'विसाहा अणुराहा जेठामूलो' विशाखा अनुराधाज्येष्टामूलश्च एतानि चत्वारि नक्षत्राणि मिलित्वा ज्येष्ठमासं परिसमापयन्ति 'विसाहा चउद्दस राइंदियाई' तत्र विशाखा नक्षत्रं ज्येष्ठमासस्य प्राथमिकानि चतुर्दश रात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति ‘अणुराहा अट्टराईदियाई णेई' अनुराधानक्षत्रं ज्येष्ठमाससम्बन्धिनोऽष्टौ रात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति 'जेहा सत्त. राईदियाई णेई' ज्येष्ठानक्षत्र ज्येष्ठमासस्य सप्त रात्रिदिवं नयति-परिसमापयति, तदेतानि, स्स जे से चरिमे दिवसे तसि च णं दिवसंसि दो पयाई अटुंगुलाई पोरिसी भवइ । उस मास का जो अन्त का दिवस है उस अन्तिम दिवस में अष्ट अंगुल अधिक द्विपदा पौरुषी होती है ऐसा कहा है। गिम्हा गं भंते ! तच्चं मासं कइ णक्खत्ता णेति' हे भदन्त ! ग्रीष्मकाल के तृतीय मास को-ज्येष्ठ मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! चत्तारि णक्खत्ता ऐति' हे गौतम! चार नक्षत्र ज्येष्ठ मास को परिसमाप्त करते हैं 'तं जहा' उन नक्षत्रों के नाम इस प्रकार से हैं 'चिसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो,' विशाखा, अनुराधा ज्येष्ठा और मूल, इनमें 'विसाहा चउद्दस राई दियाई' विशाखा जो नक्षत्र है वह ज्येष्ठमास के प्राथमिक १४ दिन रातों को समाप्त करता है, 'अणुराहा अट्टराई दियाई णेई' अनु राधा नक्षत्र ज्येष्ठमास के माध्यमिक आठ दिन रातों को समाप्त करता है, 'जेट्ठा सत्तराई दियाई णेई' ज्येष्ठा नक्षत्र सात दिन रातों को समाप्त करता है 'मूलो चरिमें दिवसे तंसि च णं दिवस सि दो पयाई अटुंगुलाई पोरिसी भवई' ते भासन रे छल्लो દિવસ છે તે છેલ્લા દિવસે આઠ આંગળ અધિક દ્વિપદા પૌરૂષી હોય છે એ પ્રમાણે કહેલ છે. 'गिम्हा णं भंते ! तच्चं मास कइ णक्खत्ता णेति' हे महन्त ! श्रीमन तृतीयभासन-76-32। नक्षत्र परिसमास ४२ छ ? माना उत्तरमा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! चत्तारि णखत्ता गेति' हे गोतम ! या२ नक्षत्र मासने परिसभाले ४२ छ 'तं जा ते नक्षत्राना नाम ! प्रमाणे छे–'विसाहा अणुराहा, जेट्ठा, मूलो' विशमा अनुराधा ये। अने भूग, मामा ‘विसाहा चउद्दस राइंदियाई' [१ ॥ रे नक्षत्र छेते रेमासना प्राथभि १४ विसरातान समास ४३ छ. 'अणुराहा अट्टराइंदियाई णेई' मनुराधा नक्षत्र 20४ भासना भाष्यभिः भ3 स तान समास 3रे छे. 'जेट्ठा सत्तराईदियाई गेड, જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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