SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे तिणि णक्खता ऐति' त्रीणि नक्षत्राणि आषाढमासं नयन्ति परिसमापयन्ति, तानि कानि त्रीणि नक्षत्राणि यानि ग्रीष्मकालिकचतुर्थ मासं परिसमापयन्ति तत्राह-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'मूलो पुवासाढा उत्तरासाढा' मूलः पूर्वाषाढा उत्तराषाढा च, इत्येतानि त्रीणि मूल पूर्वाषाढा उत्तराषाढा लक्षणानि नक्षत्राणि चतुर्थमासं परिसमापयन्ति, तत्र 'मूलो चउद्दस राइंदियाई णेइ' मूलनक्षत्रं चतुर्दशरात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति 'पुच्यासाढा पण्णरस राइंदियाइं णेई' पूर्वाषाढा नक्षत्र माषाढमासस्य माध्यमिकानि पञ्चदशरात्रिंदिवं नयतिपरिसमापयति 'उत्तरासाढा एगं राइदियं णेइ' उत्तराषाढा नक्षत्रमाषाढमासस्य चरममेकं रात्रिदिवं नयति-परिसमापयति, एतानि ग्रीष्मकालिक चत्वारि अपि सूत्राणि सरलान्येव प्रायः पूर्व पूर्वसूत्रानुसारित्वात् केवल माषाढमासे यद्वैलक्षण्यं तत्स्वयमेव दर्शयितुमाह-'तयाणं' इत्यादि. 'तयाणं वहाए समचउरंससंठाणसंठियाए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सरिए अणुपरियट्टई' तदा आषाढमासे खलु वृत्तया समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितया न्यग्रोधपरिमण्डलया स्वकायमनुरंगिन्या छायया सूर्योऽनुपर्यटते, अयं भावः तस्मिन् आषाढ णक्खत्ता णेति' हे गौतम ! आषाढ मासको तीन नक्षत्र अपने उदय के अस्तं. गमन द्वारा परिसमाप्त करता है 'तं जहां' उन नक्षत्रों के नाम इस प्रकार से हैं 'मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा' मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढा नक्षत्र और उत्तराषाढा नक्षत्र, इनमें 'मूलो चउद्दसराइंदियाइं इ' मूल जो नक्षत्र है वह आषाढमास के प्राथमिक १४ रात्रि दिवसों को अपने उदय के अस्तंगमन द्वारा परिसमाप्त करता है 'पुव्वासाढा पण्णरस राइंदियाइं णेइ' पूर्वाषाढा नक्षत्र आषाढमास के माध्यमिक १५ रात्रि दिनों को परिसमाप्त करता है और 'उत्तरासाढा एगं राइंदियाइं णेइ' उत्तराषाढा नक्षत्र आषाढ मास के अन्त के एक दिनरात को परिसमाप्त करता है। इस प्रकार से ये तीन नक्षत्र आषाढमास के तीस दिनरातों को समाप्त करते हैं। आषाढमास के अन्त के दिन में 'तयाणं समचउरंस संठाणसंठियाए णगो. हपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छायाए सूरिए अणुपरियई' समचतुरस्त्र भाभासने १ नक्षत्र पाताना यना २५२तमन २॥ परिसमास ४२ छ, 'तं जहा ते नक्षत्राना नाम ॥ प्रमाणे छ-'मूलो पुवासाढा, उत्तरासाढा' भूस नक्षत्र पूर्वाषाढा नक्षत्र भने उत्तराषाढा नक्षत्र, मेमा 'मूलो धउद्दस राइंदियाई णेई' भूसरे नक्षत्र छ ते अषाढ માસના પ્રાથમિક ૧૪ રાત દિવસોને પોતાના ઉદયના અસ્તગમન દ્વારા પરિસમાપ્ત કરે છે. 'पुव्वासाढा पण्णरम राई दियाई णेइ' पूर्वाषाढा नक्षत्र अषाढमासना मायमि 1५त हिवसान परिसमास ४२ छे भने 'उत्तरासाढा एगं राइंदियाइं णेइ' उत्तराषाढा नक्षत्र અષાઢમાસના છેલ્લા એક દિવસ રાતને સમાપ્ત કરે છે. આ રીતે આ ત્રણ નક્ષત્ર અષાઢभासना त्रास हवस शताने समास ४२ 2. अषाढमासन मन्तन हिवसे 'तयाणं समचउरंस सठाण सठियाए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाप छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ' જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy