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________________ ४३६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे गति' हेमन्तानां हेमन्तकालस्य भदन्त ! चतुर्थ फाल्गुनलक्षणं मासं कति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तं गमनेन मासं परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्पादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिण्णि णक्ख ताणेंति' त्रीणि नक्षत्राणि फाल्गुनमासं नयन्तिपरिसमापयन्ति, कानि तानि तत्राह-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'महा पुच्वा फग्गुणी उत्तराफग्गुणी' मघा पूर्वाफल्गुनी उत्तराफल्गुनी, तत्र-'महाचउद्दसराईदियाई इ' मघानक्षत्रं चतुर्दश रात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति 'पुव्वा फल्गुणी पण्णरसराइंदियाई णेई' पूर्वाफल्गुनी नक्षत्रं फाल्गुनमासस्य पञ्चदश रात्रिदिवं नयति-परिसमापयति 'उत्तराफग्गुणी एगं राई दियं णेइ' उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र फाल्गुनमासस्य चरममेकं रात्रिदिवं नयति-परिसमापयति, तदेवं मिलित्वा एतानि त्रीणि नक्षत्राणि हेमन्तकालस्य चतुर्थ फाल्गुनमासं परिसमापयन्तीति । 'तयाणं सोलसंगुलपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियट्टइ' तदा खलु चरमदिवसे षोडशाङ्गुलपौरुष्या छायया सूर्योऽनुपर्यटते-अनुपरावर्त ते, एतदेव अंगुल अधिक त्रिपदा पौरूषी होती है। 'हेमंताणं भंते ! चउत्थं मासं कइ णक्ख. ताणेति' हे भदन्त ! हेमन्तकाल के चतुर्थमास रूप फाल्गुनमास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! तिण्णि णक्खत्ता णेति' हे गौतम ! तीन नक्षत्र फाल्गुन मास को समाप्त करते हैं'तं जहा' वे नक्षत्र ये हैं 'महा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफरगुणी' मघा, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी इनमें 'महा चउद्दस राइंदियाई णेइ' मघा जो नक्षत्र है वह फाल्गुनमास के १४ अहोरातों को समाप्त करता है 'पुच्चा फग्गुणी पण्णरसराई दियाई' पूर्वा फाल्गुनी १५ अहोरातों को समाप्त करता है और 'उत्तराफग्गुणी एगं राइंदियं णेइ' उतराफाल्गुनी एक दिनरात को समाप्त करता है इस तरह ये तीन नक्षत्र मिल कर हेमन्तकाल के फाल्गुनमास को समाप्त करते हैं । 'तयाणं सोलसंगुल पोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियई' इस फाल्गुन मास के अन्तिम दिन में सोलह अंगुल अधिक पौरुषी रूप छाया से युक्त हुआ सूर्य परिभ्रमण पौषी हाय छे. 'हेमंताणं भंते ! चउत्थं मास कइ णक्खत्ता ऐति' 8 महन्त ! उमन्तકાળના ચોથા માસ રૂપ ફાલ્ગન માસને કેટલાં નક્ષત્ર પરિસમાપ્ત કરે છે ? એના જવાબમાં प्रभु ई छ-'गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता ऐति' गौतम ! १ नक्षत्र शुनभासने समास २ छ-'तं जहा' त नक्षत्र मा प्रभारी छ 'महा, पुवाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी' मधा पूर्वाशगुनी भने २३गुनी मां 'महा चउद्दस राइंदियाई इ' भघा नक्षत्र छ त मासना १४ हिस-शतान समास ४२ छ 'पुव्वाफग्गुणो पण्णरस राइंदियाई' पूर्वानी १५ अडराताने समास ४२ छ भने 'उत्तराफग्गुणी एग राइंदियं णेइ' उत्त।. ફાલ્ગની એક દિવસરાતને સમાપ્ત કરે છેઆ રીતે ત્રણ નક્ષત્ર મળીને હેમન્તકાળના सभासने समास ७२ छे. 'तयाणं सोलसगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टई' । જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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