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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० २६ मासपरिसमापकनक्षत्रनिरूपणम् ४३५ 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिण्णि पुस्सो असिलेसा महा' पुष्योऽश्लेषा मवा एतानि त्रीणि नक्षत्राणि मासं परिसमापयन्ति, तत्र 'पुस्सो चउद्दस राई दियाई णेई' पुष्यनक्षत्रं चतुर्दश रात्रिदिवं माघमासस्य प्राथमिकानि नयति-परिसमापयति 'असिलेसा पण्णरस' अश्लेषानक्षत्रं माधमासस्य द्वितीयानि पञ्चदश रात्रिदिवं नयति परिसमापयति 'महा एक' मधानक्षत्रं माधमासस्य चरममेकं रात्रिदिवं परिसमापयति, तदेवं मिलित्वा एतानि नक्षत्राणि माधमार्स परिसमापयतीति । 'तयाणं वीसंगुलपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियट्टई तदा माधमासस्य चरमदिवसे विंशत्यङ्गुलपौरुष्या-विंशत्यगुलाधिकपौरुष्या छायया सूर्योऽनुपर्यटते, एतदेव दर्शयति-तस्स मासस्स' इत्यादि, 'तस्सणं मासस्स जे से चरिमे दिवसे' तस्य खलु माधमासस्य योऽसौ चरमो दिवसः-पर्यन्त दिनम् 'तंसि च णं दिवसंसि तिण्णि पयाई अटुंगुलाई पोरिसी भवइ' तस्मिंश्च खलु चरमे दिवसे त्रीणि पदानि अष्टौ चाङ्गुलानि पौरुषो भवतीति । अथ चतुर्थ पृच्छति-'हेमंताण' इत्यादि, 'हेमंताणं भंते ! चउत्थं मासं कइणक्खता हैं ? समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! तिणि पुस्सोअसिलेसा, महा' हे गौतम ! तीन नक्षत्र माघ मास के परिसमापक होते हैं ये तीन नक्षत्र पुष्य, अश्लेषा और मधा है, इनमे 'पुस्सो चउद्दसराइंदियाई णेई' पुष्य नक्षत्र माघ मास के १४ दिनों को क्षपित करते हैं 'असिलेसा पण्णरस' अश्लेषा नक्षत्र माधमास के १५ दिनों को समाप्त करते हैं 'महा एक और मधा नक्षत्र माधमास के एक दिन रात को समाप्त करता है। इस प्रकार से ये नक्षत्र माधमास के परिसमापक होते हैं । 'तयाणं वीसंगुल पोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियइ' इस माघ मास के अन्त के दिन बीस अंगुल अधिक पौरपौरूषी छाया से युक्त हुआ सूर्य परिभ्रमण करता है इसी बात की पुष्टि 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे संसि च णं दिवसंसि तिणि पयाइं अटुंगुलाई पोरिसा भवई' सूत्रकार ते इस सूत्र द्वारा की है अर्थात इसमास के अन्त के दिन आठ माना ४ाममा प्रभु ६ छ-'गोयमा ! तिण्णि पुस्सो असिलेसा महा' है गौतम! त्र। નક્ષત્ર માહ માસના પરિસમાપક હોય છે આ ત્રણ નક્ષત્ર પુપ, અશ્લેષા અને મઘા छे सभा 'पुस्सो चउद्दस राइं दियाइं णेई' पुष्य नक्षत्र भाड भासन। १४ हिवसाने समास ७२ छ 'असिलेसा पण्णरस' मवेषा नक्षत्र माइमासना १५ सोन समास १३ . 'महा एक' भने भा नक्षत्र भडामासन १६५स-रातने समास ४२ . 0 प्रारं मागे नक्षत्र भाभासना परिसभा५४ हाय छ 'तयाणं वीसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ' 20 भाइभासना छेदा से २० अघि पो३५३५ छायाथा युत प्ये सूर्य पश्लिम४२ छ. मातनु समर्थन 'तस्सणं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तसि च णं दिवस सि तिणि पयाई अटुंगुलाई पोरिसी भवई' सूत्र २ मा સૂત્ર દ્વારા કરેલું છે અર્થાત્ આ માસના અન્તિમ દિવસે આઠ આંગળ અધિક ત્રિપદા જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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