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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० २६ मासपरिसमापकनक्षत्रनिरूपणम् ४३७ दर्शयति-'तस्सणं मासस्स जे से चरमे दिवसे' तस्य खलु मासस्य योऽसौ चरमो दिवस: 'तंसि च णं दिवसंसि' तस्मिंश्च खलु चरमे दिवसे 'तिण्णि पयाइं चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवइ' त्रीणि पदानि चत्वारि चाङ्गुलानि पौरुषी भवतीति गतो हेमन्तकालः॥ ___ अथानन्तरं ग्रीष्म पृच्छति-'गिम्हाणं भंते ! पढम' इत्यादि, 'गिम्हाणं भंते ! पढम मासं कइणक्खत्ता ऐति' ग्रीष्माणां ग्रीष्मकालस्य खलु भदन्त ! प्रथमं चैत्रलक्षणं मासं कतिकियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तं गमनेन-परिसमाप यन्तीति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिण्णि णक्खत्ता ऐति' त्रीणि नक्षत्राणि ग्रीष्मकालस्य प्रथमं मासं नयन्ति-परिसमापयन्ति 'तं जहा' तद्यथा-'उत्तरा फग्गुणी हत्थो चित्ता' उत्तराफाल्गुनी हस्तश्चित्रा च, तत्र 'उत्तराफग्गुणी चउद्दस राइंदियाई णेइ' उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रं ग्रीष्मकालिकप्रथमचैत्रमासस्य प्राथमिकानि चतुर्दश रात्रिदिवं नयतिस्वास्तं गमेन परिसमापयति, 'हत्थो पण्णरस राईदियाई णेइ' हस्तनक्षत्रम्, चैत्रमासस्य करता है। यही बात 'तस्स णं मासस्स जे से चरमे दिवसे तंसि च दिवमसि तिणि पयाइं चतारि अंगुलाई पोरिसी भवई' इस सूत्र द्वारा स्पष्ट की गई है कि फाल्गुन मास के अन्तिमदिन चार अंगुल अधिक त्रिपदा पौरुषी होती है। । 'गिम्हाणं भंते ! पढमं मासं कइ णक्खत्ता णेति' हे भदन्त ! ग्रीष्मकाल के प्रथममास को-चैत्रमास को कितने नक्षत्र समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! तिन्नि णक्वत्ता ऐति' हे गौतम! तीन नक्षत्र समाप्त करते हैं 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं-'उत्तराफरगुणी हत्थो चित्ता' उत्तरा फाल्गुनी, हस्त और चित्रा इनमें 'उत्तरा फल्गुणी चउद्दसराइंदियाइं णेइ' उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र ग्रीष्म काल के प्रथम मास चैत्रमास के चौदह अहोरातों को समाप्त करता है 'हत्थो पण्णरस राइंदियाई णेइ' हस्त नक्षत्र चैत्रमास के १५ ફાગણ માસના છેલ્લા દિવસે સોળ આંગળ અધિક પૌરૂષીરૂપ છાયાથી યુક્ત થયેલ સૂર્ય पालमा १२ छे. भारी पात 'तस्सणं मासरस जे से चरमे दिवसे तंसि च णं दिवस सि तिणि पयाइं चत्तारि अंगुलाई पोरिसी भवई' के सूत्र दा२। २५८ १२वामा भावी छ। ફાગણ માસના અન્તિમ દિવસે ચાર આંગળ અધિક ત્રિપદી પૌરૂષી હોય છે. __'गिम्हाणं भंते ! पढमं मास कइ णक्खत्ता गति' ३ महन्त ! श्रीमान प्रथम भासने-थैत्रमासने ३८। नक्षत्र समास ४२ छ ? माना सम प्रभु -'गोयमा! तिन्नि णक्खता ऐति' हे गौतम!त्रण नक्षत्र सभात ४२ छे. 'तं जहा' तमना नाम मा अरेछे-'उत्तराफरगुणी हत्थो चित्ता' उत्तराशुनी त मन भित्र सभा 'उतराफरगुणो चउद्दसराइंदियाई णेई' उत्तगुनी नक्षत्र श्रीमान प्रथम भास थैत्रमासनी यो महरातार समा ४२ छ. 'हत्थो पण्णरस राइंदियाइं णेई' १२त नक्षत्र थैत्र मासनी १५ मात्रिमान समास ४२ छ 'चित्ता एग राइंदियं णेई' भने यि नक्षत्र क्षेत्रमासना જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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