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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० २५ नक्षत्राणां कुलादिद्वारनिरूपणम् ३७७ ७ फल्गुनी नक्षत्रे भवा फाल्गुनी पूर्णिमा 'चेत्ती ८' चैत्री चित्रायां भवा चैत्री 'वइसाही' ९ वैशाखी विशाखायो भवा वैशाखी 'जेट्ठामूली' १० ज्येष्ठामूली ज्येष्ठायां मूले च भवा जेष्ठा ११ मूली १२ 'आसाढी' आषाढी इति । यद्यपि प्रश्नसूत्रे पूर्णिमाऽमावास्यो भैदेन निर्देशः कृतः उत्तरसूत्रे यद् भेदेन द्वयो निर्देश स्तद् द्वयो न मैक्यदर्शनार्थम् तेनामावास्या अपि श्राविष्ठी प्रौष्ठपदी अश्वयुजी इत्यादिभिः व्यपदेष्टुं योग्या भवन्त्येवेति । ननु श्राविष्ठी पूर्णिमा धनिष्ठापरपर्यायश्रविष्ठा योगाद् भवति श्राविष्ठी अमावास्यातुन श्रविष्ठा योगात्, अमावास्याया अश्लेषामघा योगस्य प्रतिपाद्यमानत्वादिति चेदत्रोच्यते और अमावास्या पौषी पूर्णिमा और अमावास्या है 'माही' मघा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या माघी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'फग्गुणी' फल्गुनी नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या फाल्गुनी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'चेती' चित्रा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा ओर अमावास्या चैत्री पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'वइसाही' विशाखा नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और अमावास्या वैशाखी पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'जेहा मूली' ज्येष्ठा नक्षत्र में और मूल नक्षत्र में होने वाली पूर्णिमा और आमावास्या ज्येष्ठा मूली पूर्णिमा और अमावास्या होती है 'आसाढी' इसी प्रकार अषाढी पूर्णिमा और अमावास्या के सम्बन्ध में जानना चाहिये इस प्रकार से ये १२ महीनों की १२ अमावास्याएं और १२ पूर्णिमाएं होती हैं। यद्यपि प्रश्न सूत्र में पूर्णिमा और अमावास्या इन दोनों का भेदपूर्वक निर्देश किया गया है और उत्तर में जो अभेद से दोनों का निर्देश हुआ है वह दोनों में ऐक्यप्रकट करने के लिये हुआ है इस कारण अमावास्याएं भी श्राविष्ठी प्रौष्ठपदी, अश्वयुजी, इत्यादि रूप से व्यपदिष्ट होने के योग्य होती ही हैं। भावनारी पूरिभा मन अमावस्या पोषी पूर्णिमा मने अमावस्या छ 'माही' भए। નક્ષત્રમાં આવતી પૂર્ણિમાં અને અમાવસ્યા માધી પૂર્ણિમા અને અમાવસ્યા કહેવાય છે. 'फग्गुणी' शुनी नक्षत्रमा थनारी पूणिमा भने अमावास्या शगुनी थिमा भने अमावास्या छ, 'चेती' यित्रा नक्षत्रमा माती पूणिमा मन अमावास्या थैत्री पूर्णिमा मन मावास्या डाय छे. 'वइसाही' विशमा नक्षत्रमा माती पूणिमा मने अमावास्या वैशाभी पूणिमा मने अमावास्या उपाय छे. 'जेद्वामूली' न्ये नक्षत्रमा भने भूल नक्षत्रमा આવતી પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા જ્યેષ્ઠામૂલી પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા કહેવાય છે. 'आसाढी' मेवी शत भाषाढी पूर्णिमा भने अमावास्याना समन्यमा न ये . આ પ્રમાણે આ ૧૨ માસની ૧૨ પૂર્ણિમાઓ અને ૧૨ અમાવાસ્યાઓ જાણવી છે કે પ્રશ્ન સૂત્રમાં પૂર્ણિમા અને અમાવાસ્યા એ બંનેને ભેદપૂર્વક નિર્દેશ કરવામાં આવ્યું છે અને ઉત્તરમાં જે અભેદથી બંનેને નિર્દેશ થયેલ છે તે બંનેમાં એકતા પ્રગટ કરવાના આશયથી થયેલ છે. આ કારણે અમાવાસ્યાઓ પણ શ્રાવિષ્ઠી, પ્રૌષ્ઠપદી, અશ્વયુજી ઈત્યાદિ રૂપથી વ્યપદિષ્ટ થવાને ચગ્ય હોય છે. ज०४८ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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