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________________ 304 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे श्राविष्ठी पूर्णिमा अस्येति श्राविष्ठः श्रावणमासः तस्य श्रावणमासस्येयममावास्या श्राविष्ठी श्रावणमासमाविनीत्यर्थः । एवमेव प्रौष्ठपद्याद्यमावास्यादिष्वपि ज्ञातव्यमिति ॥ ____ सम्प्रति-यैर्नक्षत्रैरेकैका पौर्णमासी परिसमाप्यते तानि नक्षत्राणि प्रष्टुमाह-'साविट्ठीणं भंते' इत्यादि, 'साविटिणं भंते !' श्राविष्ठी खलु भदन्त ! पौर्णमासीम् 'कइणखत्ता जोग जोएंति' कति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि योगं संबन्धं योजयन्ति, अर्थात् कति नक्षत्राणि चन्द्रेण सह संयुज्य परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम! 'तिण्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति' त्रीणि नक्षत्राणि योगं संबन्धं योजयन्ति-कुर्वन्ति त्रीणि नक्षत्राणि चन्द्रेण सह संयुज्य परिसमापयन्तीत्यर्थः, नक्षत्रत्रयमेव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' __ शंका-श्राविष्ठी पूर्णिमा धनिष्ठा नामक नक्षत्र के योग से कि जिसका दूसरा नाम श्रविष्ठ नक्षत्र भी कहते है, परन्तु श्राविष्ठी अमावास्या है वह तो श्रविष्ठा नक्षत्र के योग से नहीं होती है क्योंकि अमावास्या अश्लेषा और मघा नक्षत्र के योग से प्रतिपाद्यमान हुई है तो उस अमावास्या को श्राविष्ठी कैसे कहते हैं ? तो इस शंका का उत्तर ऐसा है श्रावि. ष्ठा पूर्णिमा जिसकी है वह श्राविष्ठ है ऐसा वह श्राविष्ठ श्रावणमास है उस श्रावणमास की यह अमावास्या है अतः इसे भी श्रावि. ष्ठी-श्रावणमास भाविनी कह दिया गया है इसी तरह का कथन प्रौष्ष. पदी अमावास्या आदिकों में भी जानना चाहिये 'साविट्ठी णं भंते ! पुणिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति' अब गौतमस्वामीने प्रभु से पूछा है-हे भदन्त ! आविष्ठी पूर्णिमा को-पौर्णमासीको-कितने नक्षत्र चन्द्र के साथ सम्बधित होकर समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तिण्णि णक्खत्ता जोगं जोएंति' हे गौतम ! तीन नक्षत्र चन्द्र के साथ सम्बन्धित होकर पूर्णिमा को શંકા-શ્રાવિષ્ઠી પૂર્ણિમા ધનિષ્ઠા નામક નક્ષત્રના યોગથી કે જેનું બીજું નામ શ્રવિષ્ઠા છે, થાય છે પરંતુ શ્રાવિષ્ઠી અમાવાસ્યા જે છે તે તે શ્રવિષ્ઠા નક્ષત્રના યોગથી થતી નથી કારણ કે અમાવાસ્યા અશ્લેષા અને મઘા નક્ષત્રના વેગથી પ્રતિપાદ્યમાન થયેલી છે. તે તેને શ્રાવિષ્ઠી અમાસ કેવી રીતે કહે છે ? આ શંકાને જવાબ આ પ્રમાણે છે-શ્રાવિષ્ઠા પૂર્ણિમા જેની છે તે શ્રાવિડ છે એટલે એ આ શ્રાવિષ્ઠ શ્રાવણમાસ છે તે શ્રાવણમાસની આ અમાવાસ્યા છે એથી આને પણ શ્રાવિષ્ઠીશ્રાવણમાસ ભાવિની કહેવામાં આવેલ છે. આ જ પ્રકારનું કથન પૌષ્ઠપદી અમાવાસ્યા पोरे भाट ५ साशु पाउ नये. 'साविट्ठी णं भंते ! पुण्णिमं कइ णक्खत्ता जोगं जोएंति' हवे गौतमस्वामी प्रभुने सवु पुच्यु-3 महन्त ! श्रापिही पूणभाने-पूમાસને-કેટલા નક્ષત્ર ચન્દ્રની સાથે સમ્બન્ધિત થઈને સમાપ્ત કરે છે? આના જવાબમાં प्रभु ४३ छ-'गोयमा ! तिणि णक्खत्ता जोगं जोएंति' गौतम ! ऋष्य नक्षत्र यन्द्रनी साथ सम्बन्धित थ पूर्षिभाने समास ४२ छ 'तं जहा' 24त्रय नक्षत्र २मा छ-'अभिई જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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