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________________ ३५२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे प्राकारः मधानक्षत्रस्य प्राकारसंस्थानं भवति इति । 'पलिअंके' पल्यङ्कः - पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र. स्यार्द्धपल्यङ्कसंस्थानं भवति, एवमुत्तरफाल्गुनी नक्षत्रस्यापि अर्द्धपल्यङ्कसंस्थानमेव भवति, एतदर्द्धपल्यङ्क द्वयमीलनेन परिपूर्णः पल्यङ्को भवति अत्र सूत्रे 'पलियंके' इति कथितमिति । 'हत्थे ' हस्तः हस्तनक्षत्रस्य हस्तसंस्थानं भवतीति । 'मुहफुल्लए चैव' मुखफुल्लकं चैव, चित्रा नक्षत्रस्य मुखमण्डनसुवर्णपुष्प संस्थानं भवति 'खीलग' कीलकम् स्वाती नक्षत्रस्य कीलक संस्थानं भवति 'दामणि' दामनी विशाखा नक्षत्रस्य पशुरज्जु संस्थानं भवति 'एगावली' एकावलिः, अनुराधा नक्षत्रस्यैकावलि संस्थानं भवति 'गजदंत' गजदन्तः ज्येष्ठा नक्षत्रस्य गजदन्तवत् संस्थानं भवति 'विच्छय अलेय' वृश्चिकलाङ्गुलम् मूलनक्षत्रस्य वृचिकस्य लागुलवत् संस्थानं भवतीति, 'गयविक्कमेय' गजविक्रमश्व, पूर्वाषाढा नक्षत्रस्य गजका जैसा संस्थान होता है वैसा है 'पलियंके' पूर्व फाल्गुनो नक्षत्र का संस्थान अर्द्धपलंग का जैसा संस्थान होता है वैसा है इसी तरह का संस्थान उत्तर फाल्गुarrer का है । 'हत्थे ' हस्तनक्षत्र का संस्थान हाथ का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'मुहफुल्ल एचेव' चित्रानक्षत्र का संस्थान मुख के मण्डन भूत सुबपुष्पका सोना - जुही का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'खीलग' स्वातिनक्षत्र का संस्थान जैसा कीलक का संस्थान होता है वैसा है 'दामणि' विशाखा नक्षत्र का संस्थान पशुबांधने की रस्सी का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'एगावली' अनुराधा नक्षत्र का संस्थान एकावली नामका हार का जैसा संस्थान होता है वैसा है। 'गजदंत' ज्येष्ठा नक्षत्र का संस्थान हाथी के दांत का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'विच्छ य अले य' मूल नक्षत्र का संस्थान जैसा बिच्छू की पूछ का संस्थान होता है वैसा है 'गयविक्कमेय' पूर्वाषाढा नक्षत्र का संस्थान हाथी के विक्रम का पैर का - जैसा संस्थान होता है वैसा है ' तत्तोय सिंह मार होय छे तेवु होय छे. 'पागारे' भधानक्षत्रनुं संस्थान आउनु भेषु संस्थान હાય तेवु छे. 'पलियंके' पूर्व शहगुनी नक्षत्रनी व्यावृत्ति अर्धसंग नेवी होय छे આજ પ્રકારના આકર ઉત્તરફાલ્ગુની નક્ષત્રના છે ‘થૅ' હસ્ત નક્ષત્રની આકૃતિ હાથના सार नेवी होय हे 'मुहफुल्लए चेव' भित्रा नक्षत्रनी आहूति भुमना भउनभूत सुवर्शपुण्यना सोनान्नुर्धना भेवेो मार होय छे. 'खीलग' स्वाति नक्षत्रनी आकृति नेवी डीसानी આકૃતિ હાય છે તેના જેવી હાય છે ‘ફાર્મનિ' વિશાખાનક્ષેત્રની આકૃતિ ઢોર બાંધવાના होरडाना नेवे। आार होय छे. तेवा प्रारती होय छे. 'एगावली' अनुराधा नक्षत्रनी शाहूति એકાવલી નામના હારના જેવા આકાર હાય છે તેના જેવી હાય છે ' જયેષ્ઠા નક્ષત્રની यावृति हाथोना हांता व सागर होय छे तेवा अहारती होय हे 'विच्छाय अलेय' भूसनक्षत्रनी आवृति विछीना पूछडीनो आहार होय छे तेवा अारनी होय छे. 'गयविक मे ૐ' પૂર્વાષાઢા નક્ષત્રની આકૃતિ હાથીના પગના જેવો આકાર હાય છે તેવા આકારની હાય છે. જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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