SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू०२२ नक्षत्राणां गोत्रद्वारनिरूपणम् ३५१ क्यार' पुष्पोपचारः शतभिषक् नक्षत्रस्य पुष्पोपचारसंस्थानम् 'वावीय' वापी च तत्र पूर्वभाद्रपदा नक्षत्रस्यार्द्धवापी संस्थानम् तथोत्तरभाद्रपदा नक्षत्रस्यापि अर्द्धवापी संस्थानमेव एतदर्द्धद्वयवापी मीलनेन परिपूर्णा वापी भवति, एतस्मादेव कारणात् सूत्र वापीसंस्थानं कथितम् अतः संस्थानानां न न्यूनता शङ्कनीयेति । 'णावा' नौः रेवतीनक्षत्रस्य नौ:- नौका. वत् संस्थानं भवति 'आसक्खंधग' अश्वस्कन्धकः अश्विनी नक्षत्रस्य अश्वस्कन्धवत् संस्थानं भवति, 'भग' भरणी नक्षत्रस्य भगसंस्थानं भवतीति 'खुरधरए' क्षुर धारा, कृत्तिकानक्षत्रस्य क्षुधा वदेव संस्थानं भवति 'सगडुद्धी' शकटोद्धी रोहिणी नक्षत्रस्य शकटोद्धी संस्थानं भवति 'मिसीसावलि' मृगशीर्षावलिः मृगशिरोनक्षत्रस्य मृगशीर्ष संस्थानं भवति, 'रुहिरबिंदु' आर्द्रा नक्षत्रस्य रुधिरविन्दुवत् - शोणितविन्दुवत् संस्थानं भवति 'तुल्ला' तुल्ला पुनर्वसु नक्षत्रस्य तुलावत् संस्थानं भवति, 'वद्धमाणग' वर्द्धमानकम् पुष्यनक्षत्रस्य सुप्रतिष्ठितवर्द्धमानक संस्थानं भवति 'पडागा' पताका, अश्लेषा नक्षत्रस्य पताकावत् संस्थानं भवति, 'पागारे' पद नक्षत्र का संस्थान अर्द्धवापि के संस्थान जैसा है उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का संस्थान भी अर्द्धवापि के संस्थान जैसा ही है 'णावा' रेवती नक्षत्र का संस्थान नौका के संस्थान जैसा है 'आसक्खंधग' अश्विनी नक्षत्र का संस्थान घोडे के कंधे के संस्थान जैसा है 'भाग' भरणी नक्षत्र का संस्थान भग के संस्थान जैसा है 'खुरधरए ' कृत्तिका नक्षत्र का संस्थान क्षुरा की धारा के संस्थान जैसा है 'सगडुद्धी' रोहीणी नक्षत्र का संस्थान गाडी धुरा के संस्थान जैसा है 'मिगसीसावलि' मृगशिरा नक्षत्र का संस्थान मृग के शीर्षका जैसा संस्थान होता है वैसा है 'रुहिर बिदु' आर्द्रा नक्षत्र का संस्थान रुधिर की बिन्दु का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'तुल्ल' पुनर्वसु नक्षत्र का संस्थान तुला- तराजू का जैसा संस्थान होता है वैसा है 'माणग' पुष्यनक्षत्र का संस्थान सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानक जैसा संस्थान होता है वैसा है 'पडागा' अश्लेषा नक्षत्र का संस्थान ध्वजाका जैसा संस्थान - आकार होता है वैसा है 'पागारे' मघानक्षत्र का संस्थान प्राकार का સંસ્થાન પુષ્પાપચાર જેવુ છે. પૂર્વભાદ્રપદા નક્ષત્રના આકાર અવાવ જેવા છે. ઉત્તરભાદ્રપદા નક્ષત્રને આકાર પણ અવાવ જેવા જ છે. ‘નાવા' રેવતીનક્ષત્રના આકાર (आकृति) नौडा नेवा छे. 'आसक्खंधग' अश्विनी नक्षत्रनो आहार घोडानी जांघ नेवा छे. 'भग' लशीनक्षत्र संस्थान लगनेवु छे. 'खुरधरए' वृत्तिनक्षत्र संस्थान क्षुरानी धारा नेवु छे, 'सगडद्धी' रोहिणी नक्षत्रने । आार गोडानी घरी नेवे छे. 'मिगसीसावली' भृगशिशनक्षत्रनेो यार हरगुना भस्त लेवे छे. 'रुहिर बिंदु' आर्द्रा नक्षत्रना आर રુધિરના બિન્દુ જેવા છે. ‘તુ' પુનઃર્વાંસુ નક્ષત્રની આકૃતિ ત્રાજવાના જેવા આકાર હાય छेतेना नेवा छे 'वद्वमाणग' पुष्यनक्षत्रनु संस्थान सुप्रतिष्ठित वर्द्धमाननी देवी आवृति होय छेतेना नेवु होय छे. 'पडागा' अश्लेषा नक्षत्र संस्थान ध्वलनानेषु संस्थान જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy