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प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू० २० संवत्सरादीनां आदित्वनिरूपणम्
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करणस्यैव संभवादिति । 'अभिजियाइया णक्खत्ता' अभिजिदादिकानि नक्षत्राणि, तत्राभिजिन्नक्षत्रमादि र्येषां तानि अभिजिदादिकानि, अभिजिन्नक्षत्रमारभ्य नक्षत्राणां क्रमेण युगे प्रवर्तमानत्वात्, तथाहि उत्तराषाढा नक्षत्रान्तिम समय पाश्चात्ये युगस्यान्तः तदनन्तरं पुनः नवीन युगस्य प्रथमनक्षत्रमभिजिदेवेति । 'पन्नत्ता समणा उसो' प्रज्ञप्तानि - कथितानि है श्रमण ! हे आयुष्मन् ! इति भगवत उत्तरम् । अन्ते सम्बोधनकथनम्, शिष्यस्य पुनरपि प्रश्नविषयक प्रयत्न प्रदीपनार्थम् अतएव हृष्टमनाः गौतमो युगे युगे अयनादि प्रमाणं प्रष्टुमाह - पं व संवच्छरिए णं भंते ! जुगे' पञ्चसम्वत्सरिके खलु भदन्त ! युगे 'केवइया अयणा पन्नत्ता' कियन्ति - कियत्संख्यकानि अयनानि प्रज्ञप्तानि तत्र पञ्चसंवत्सराः सूर्य संबन्धिनो मानं प्रमाणं यस्य तत्पञ्चसंवत्सरिकं युगम् तस्मिन् युगे हे भदन्त ! कति कियत्संख्यकानि वाइया करणा' करणों मे सब से प्रथम करण बालवही होता है क्योंकि कृष्णपक्ष के प्रतिपदा के दिन इस मुहूर्त का ही सद्भाव होना कहा गया है 'अभिजियाsurreaत्ता' नक्षत्रों में सर्व प्रथम नक्षत्र अभिजित् होता है क्योंकि युग में अभिजित् नक्षत्र को लेकर ही शेष नक्षत्रों की क्रम क्रम से प्रवृत्ति होती है । इसका स्पष्टीकरण ऐसा है-उत्तराषाढा नक्षत्र के अन्तिम समय के पाश्चात्य समय में ही युग का अन्त होता है फिर उसके अनन्तर समय में ही पुनः नवीन युग का जो अभिजित् नक्षत्र है वही होता है । 'पन्नत्ता समणाउसो' इस प्रकार से संवत्सरादि कों में से कौन संवत्सरादिकों मेंसे कौन संवत्सरादिक आदिवाले हैं हे श्रमण आयुष्मन् गौतम ! हमने तुम्हें बताया है। ऐसा यह प्रभु की ओर से उत्तर वाक्यका कथन है ।
अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'पंच संवच्छरिए णं भंते ! जुगे केवइया अयणा पण्णत्ता' हे भदन्त ! पांच प्रकार के जो संवत्सर कहे गये हिमां रुद्र होय छे र है प्रातः अणमा रुद्र भुर्त्तनी ४ प्रवृत्ति थाय छे. 'बाल वाइया करणा' ४२मां सर्व प्रथम मुगु मासव होय छे र कृष्ण पक्षना पडवानी हिवस मा मुहूर्त सहभाव वा वामां आव्युं छे. 'अभिजियाइयाणक्खत्ता' नक्षत्रामां सर्व प्रथम नक्षत्र समिति होय छे. आरण हे युगमां मलिनित् નક્ષત્રને લઈને જ શેષ નક્ષત્રની ક્રમે ક્રમે પ્રવૃત્તિ થાય છે. આનુ સ્પષ્ટીકરણ આ પ્રમાણે ઉત્તરાષાઢા નક્ષત્રમાં અન્તિમ સમયની માદના સમયમાં જ યુગને અન્ત થાય છે. પછી તેની અનન્તર સમયમાં જ પુનઃ નવીન યુગનુ જે અભિજિત નક્ષત્ર છે તે જ હાય छे. 'पन्नत्ता समणाउसो' आ रीते संवत्सराद्विमांथी या संवत्सराहिमांथी ध्यां सवत्सરાદિક આદિવાળા છે. હે શ્રવણુ આયુષ્યન્ ! ગૌતમ અમે તમને તે ખતાવ્યા છે. એવું આ પ્રભુની તરફથી ઉત્તર વાયનું કથન છે.
हवे गौतमस्वामी अलुने खेवु छे छे-पंच पण्णत्ता' हे महंत ! पांय प्रहारना ने संवत्सर
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
संवच्छरिए णं भंते ! जुगे केवइया अयणा हेवामां भाव्या छे तो ते संवत्सर